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डॉ. हरिवंशराय बच्चन के अनुसार, “वह वृषभ कंध ही नहीं, वृषभ कंठ भी थे। सन् 1933 में प्रयाग में द्विवेदी मेले के अवसर पर आयोजित कवि दरबार में पंतजी (सुमित्रानंदन) की भूमिका में कविवर नरेंद्र शर्मा उतरे थे, निरालाजी के लिए भी कोई लंबा, साँवला, दुबला व्यक्ति मिल गया था। पर नवीनजी के डील-डौल और काठी का कोई नौजवान प्रयाग में नहीं मिला। कवि दरबार के संयोजक राजर्षि टंडन के सुपुत्र गुरुप्रसाद थे, जिन्होंने नवीनजी को देखा था और उनकी कविता भी सुनी थी।
अपने सिद्धांतों पर नवीनजी सदैव अडिग रहे। राजभाषा-राष्ट्रभाषा के प्रश्न पर वह न तो अपने परम श्रद्धेय महात्मा गांधी की अनसुनी करने में हिचके, न अपने ‘प्यारे जवाहर भाई’ से जूझने में। गांधीजी की हिंदुस्तानी प्रचार सभा को उन्होंने बेझिझक ‘हिंदी-हत्या प्रचार सभा’ घोषित किया।
विष्णु त्रिपाठी 06 सितंबर, 1941 को कानपुर में जनमे विष्णु त्रिपाठी ने अपनी लगभग पाँच दशकों की पत्रकारिता-यात्रा ‘नॉदर्न इंडिया’ पत्रिका से 1963 में प्रारंभ की। राष्ट्रभाषा-प्रेम ने शीघ्र ही हिंदी पत्रकारिता से जोड़ दिया। ‘विश्वमित्र’, ‘जागरण’, ‘आज’, ‘स्वतंत्र भारत’, ‘अमर उजाला’ आदि दैनिक पत्रों के संपादन से संबद्ध रहने के अतिरिक्त ‘सोपान’, ‘जन्मभूमि’, ‘राष्ट्रीय गोलमेज’, ‘बहती गंगा’, ‘एक था कानपुर’, ‘देख कंपू देख’ आदि लोकप्रिय स्तंभों के रचियता विष्णु त्रिपाठी की कहानियाँ और कविताएँ भी पाठकों ने सराहीं। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के लिए ‘मध्य उत्तर प्रदेश की स्वातंत्र्योत्तर हिंदी पत्रकारिता का इतिहास’ लिखा।अपनी जुझारू प्रवृत्ति के कारण पत्रकार-आंदोलन में क्रियाशील रहते हुए जागरण कर्मचारी संघ के संस्थापक अध्यक्ष, कानपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष तथा राज्य प्रेस मान्यता समिति के सदस्य रहे।संप्रति : उ.प्र. श्रमजीवी पत्रकार यूनियन (रजि.) के कार्यकारी अध्यक्ष तथा ‘प्रताप’ शताब्दी समारोह समिति के संयोजक के रूप में सक्रिय।