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भारत एक विकासशील देश है। यहाँ की विशाल जनसंख्या—120 करोड़—किसी भी बड़ी कंपनी को अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम है। हम 120 करोड़ भारतीयों को सोचकर ही अनेक भारतीय व अंतरराष्ट्रीय कंपनियाँ अपने उत्पाद बनाकर इन्हें बेचने, मार्केट करने की रणनीतियाँ बनाती हैं। पर भारतीय उपभोक्ताओं की विविधता और जटिलता किसी को भी भ्रमित कर सकती है।
ऐसी स्थिति में सुप्रसिद्ध मार्केट रणनीतिकार व उपभोक्ता मामलों की विशेषज्ञ रमा बीजापुरकर के व्यापक और व्यावहारिक अनुभव से निकली यह कृति भारतीय उपभोक्ताओं पर अच्छी अंतर्दृष्टि देनेवाली है।
यह पुस्तक अनगिनत विश्लेषक गोष्ठियों, पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन और भाषणों का नतीजा है, जो विश्व भर में अनेक जगह इस विषय पर हुए कि भारतीय उपभोक्ताओं और भारतीय बाजार के साथ क्या संभावनाएँ हैं तथा क्या विरोधाभास और खतरे हैं।
उपभोक्ता भारत पर यह पुस्तक व्यापक पाठक वर्ग के लिए अधिक उपयोगी होगी। भारत ध्यान आकर्षण का केंद्र होने के साथ-साथ अपनी विषमताओं और विरोधाभासों से भ्रम की स्थिति पैदा कर रहा है कि कौन सी नीति प्रयोग की जाए।
यह पुस्तक भारतीय उपभोक्ता की दुनिया, उसके दृष्टिकोण, चाहत और व्यवहार की विस्तृत यात्रा कराती है। भारत के अलग-अलग इलाकों का उदाहरण देकर पूरे भारत का ऐसा वर्णन इस पुस्तक में है, जिसे अन्यत्र पाना मुश्किल भी है और दुर्लभ भी।
—एन.आर. नारायण मूर्ति
इन्फोसिस के संस्थापक
हालाँकि भारत बहुत जटिल बाजार है, फिर भी कुछ ऐसे सरल सत्य हैं, जो प्रबंधकों को मान लेने चाहिए। भारतीय उपभोक्ता को पैसे की पूरी कीमत चाहिए। भारतीय उपभोक्ता गरीब हो सकता है, पर पिछड़ा नहीं है। रमा बीजापुरकर की यह पुस्तक भारतीय उपभोक्ताओं के बड़े लेकिन जटिल बाजार के बारे में बड़ी कुशलता से बताती है।
—सी.के.प्रह्लाद
विश्वप्रसिद्ध मैनेजमेंट गुरु
बीजापुरकर का कार्य एकदम अलग प्रकार का है; यह साधारण कमेंटरी नहीं है, बल्कि भलीभाँति किए गए शोध और तथ्यों पर आधारित है। इसमें प्रवचन नहीं, बल्कि विश्लेषण पर जोर दिया गया है। जिस शैली में उन्होंने संदेश दिया है, वह तो उनका ट्रेडमार्क बन गया है। —बिजनेस टुडे
बीजापुरकर के अनुसार, भारत के चालू और जटिल बाजार में उपभोक्ता के व्यवहार को कई कोणों से देखना चाहिए। इस आकर्षक पुस्तक में कई मान्यताओं, मिथकों और पारंपरिक अवधारणाओं के बारे में बताने की कोशिश की गई है।
—इकोनॉमिक टाइम्स
बीजापुरकर की यह पुस्तक भारतीय उपभोक्ताओं के मानस और उसके व्यवहार को समझने में सहायक सिद्ध होगी।
—इंडिया टुडे
यह बहुत अच्छी तरह से लिखी गई पुस्तक है, जिसमें बहुत सारे उपाख्यान दिए गए हैं। —इंडियन एक्सप्रेस
बीजापुरकर का शिक्षक और कंसल्टेंट के रूप में ज्ञान बहुत अच्छा है। यह पुस्तक उसी ज्ञान को आम आदमी तक पहुँचाने का माध्यम है। —हिंदुस्तान टाइम्स
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अनुक्रम
भूमिका — Pgs. 7
प्राकथन — Pgs. 11
लेखकीय — Pgs. 15
आभार — Pgs. 19
1. भारत के लिए निर्मित — Pgs. 25
2. भारतीय उपभोता : बाजार के मिश्रित संदेश — Pgs. 34
3. भारतीय उपभोता की चिंता यों? — Pgs. 48
4. भारत के उपभोता की माँगों की समझ — Pgs. 67
5. आखिर भारतीय उपभोता की क्रय-शति कितनी है? — Pgs. 87
6. भारतीय जन-गण की मानसिकता — Pgs. 106
7. उपभोग का निर्धारण — Pgs. 120
8. उपभोता-भारत में आनेवाले बदलाव का अध्ययन एवं पूर्वानुमान — Pgs. 141
9. भारतीय उपभोता के सांस्कृतिक आधार — Pgs. 155
10. युवा एवं महिलाओं का भारत : एक विवेचन — Pgs. 171
11. ग्रामीण भारतीय उपभोता — Pgs. 194
12. सबसे गरीब उपभोता का आकलन — Pgs. 206
13. जीतना भारतीय बाजार में — Pgs. 218
‘मार्केट स्ट्रेटजी और उपभोक्ता’ मामलों की देश की ख्यातनाम जानकार हैं। उदारीकरण के दौर में भारत में हो रहे सामाजिक व सांस्कृतिक परिवर्तनों पर उनके विचार अत्यंत महत्त्वपूर्ण माने गए हैं। प्रसिद्ध भारतीय एवं वैश्विक कंपनियों को उनकी बिजनेस-मार्केटिंग के विस्तार के सूत्र व नीतियाँ बतानेवाली उनकी अपनी कंपनी है।
वे एक्सिस बैंक, क्रिसिल (CRISIL), गिव फाउंडेशन व महिंद्रा हॉलिडेज एंड रिसॉर्ट्स इंडिया लि. के बोर्ड की स्वतंत्र निदेशक हैं। वे बिजनेस रणनीतियों में भारतीय उपभोक्ता अर्थव्यवस्था के उपयोग के अध्ययन हेतु बनी संस्था NCAER-CMCR की संस्थापक अध्यक्ष हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, अहमदाबाद की पूर्व छात्रा रहीं रमा इसकी विजिटिंग फैकल्टी हैं और बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की सदस्या भी।मैकिंजे एंड कं. MARG (अब एसी नीलसन इंडिया) जैसी प्रतिष्ठित कंपनियों में उच्च पदों पर रहीं रमा हिंदुस्तान लीवर(अब हिंदुस्तान यूनीलीवर इंडिया) की पूर्णकालिक परामर्शदाता भी रहीं और इन कंपनियों को बाजारवाद के बारे में शोध करके बिजनेस के विस्तार की रणनीतियाँ बताईं।
संपर्क : rama.mail@bijapurkar.com