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"जॉर्ज ऑरवेल की '1984' एक कालजयी साहित्यिक कृति है, जो निगरानी प्रचार और पूर्ण सत्तावादी नियंत्रण से घिरी एक भयावह दुनिया का चित्रण करती है। 'बिग ब्रदर' की सतत निगरानी में अपनी पहचान और मानवता को बचाने के लिए संघर्ष करते विंस्टन स्मिथ की कहानी के माध्यम से ऑरवेल ने स्वतंत्रता, सत्य और छाक्तिगत अस्तित्व के दमन की गहन पड़ताल की है।
यह ऐतिहासिक उपन्यास सत्ता के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाठों पर तीखा विचार प्रस्तुत करता है, साथ ही मानव अधिकारों की नाजुकता और वास्तविकता के नियंत्रण की गहरी समझ प्रदान करता है। प्रतिरोध, सामंजस्य और प्रामाणिकता की सार्वभौमिक खोज पर आधारित इसके विषय आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने इसके पहली बार प्रकाशित होने पर थे। '1984' की प्रासंगिकता समय और संस्कृतियों की सीमाओं से परे जाती है और यह भारत की समकालीन सामाजिक-राजनीतिक वास्तविकताओं से भी गहराई से जुड़ती है।"
25 जून, 1903 को मोतिहारी में जनमे जॉर्ज ऑरवेल एक अंग्रेजी उपन्यासकार, निबंधकार, पत्रकार और आलोचक थे। उनका मूल नाम एरिक आर्थर ब्लेयर था। उन्होंने बर्मा में इंपीरियल पुलिस में नौकरी की और फिर स्पेनी गृहयुद्ध के लिए रिपब्लिकन आर्मी में शामिल हो गए। ऑरवेल ने छह उपन्यासों के साथ ही अनेक निबंध और कथेतर साहित्य की रचना की। सुस्पष्ट गद्य, सामाजिक अन्याय के प्रति जागरूकता, सर्वसत्तावाद का विरोध और लोकतांत्रिक समाजवाद का मुखर समर्थन उनकी रचनाओं की विशिष्टता है।
ऑरवेल के लेखन में आलोचना, कविता, उपन्यास और कठोर शब्दों वाली पत्रकारिता शामिल रही। वे अपने लाक्षणिक लघु उपन्यास ‘एनिमल फार्म’ (1945) और निराशावादी परिस्थितियों को दरशाने वाले उपन्यास ‘नाइनटीन एटी फोर’ (1949) के लिए सुविख्यात हैं। जिस प्रकार राजनीति, साहित्य, भाषा और संस्कृति पर उनके लेखों की प्रशंसा हुई है, उसी प्रकार इंग्लैंड के उत्तर में मजदूर के रूप में जीवन जीने के उनके अनुभव को बतानेवाली ‘द रोड टू विगन पायर’ (1937) और स्पेनी गृह युद्ध में उनके अनुभवों का वर्णन करनेवाली ‘होमेज टु कैटालोनिया’ (1938) जैसी कथेतर रचनाओं की व्यापक सराहना हुई।