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धर्मशास्त्रों, नीतिशास्त्रों की कथाएँ तथा ऋषि-मुनियों, वीर-वीरांगनाओं, विभिन्न क्षेत्रों के आदर्श पुरुषों के जीवन प्रसंग आदर्श जीवन जीने, अपना कर्तव्यपालन करने की प्रेरणा देने में हमेशा से सहायक रहे हैं। बच्चे दादा-दादी, नाना-नानी व माता-पिता के मुख से प्रेरक कथाएँ सुनने के लिए लालायित रहा करते हैं। इन आदर्श कथाओं, पावन प्रसंगों से बालकों को सत्य बोलने, माता-पिता, वृद्धजनों व गुरुजनों की सेवा व सम्मान करने, धर्मानुसार आदर्श जीवन जीने की स्वत: प्रेरणा मिलती है। 201 प्रेरक नीति कथाएँ की सरल-सुबोध कहानियाँ हमारे जीवन की दिशा बदलने की क्षमता रखती हैं। सदगुण, सदाविचार, सदाचार—यानी मानव जीवन के लिए आवश्यक सभी गुणों की खान हैं ये नीति कथाएँ। इन्हें पढ़कर हम सन्मार्ग पर चलें और धर्ममय नीति-रीति से जीवन जिएँ तो इस संग्रह का प्रकाशन सार्थक होगा।
जन्म : 31 अक्तूबर, 1938 को पिलखुवा (गाजियाबाद) में।
सन् 1967 में हिंदुस्थान समाचार (संवाद समिति) के संपादकीय विभाग में नियुक्त। 1968 में संसद् की कार्यवाही की रिपोर्टिंग शुरू की। आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से संसद् समीक्षा, सामयिकी तथा साक्षात्कार प्रसारित।
प्रकाशन : 1962 के शहीदों पर ‘हिमालय के प्रहरी’, जिसकी भूमिका राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखी। ‘धर्म-क्षेत्रे’ (प्रेरक प्रसंग), ‘हमारे वीर जवान’, ‘माटी है बलिदान की’, ‘अमर सेनानी सावरकर’, ‘नेताजी सुभाषचंद्र बोस’, ‘लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक’, ‘स्वामी विवेकानंद जीवन और विचार’, ‘भारत की वीर गाथाएँ’, ‘न्याय की कहानियाँ’, ‘सबसे बड़ी जीत’ (बाल साहित्य), ‘222 शिक्षाप्रद बोध कथाएँ’, ‘201 प्रेरक नीति कथाएँ’, ‘सोने का महल’, ‘कारगिल के वीर’, ‘शहीदों की गाथाएँ’, ‘जवानों की गाथाएँ’ आदि तीन दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।
सम्मान-पुरस्कार : कुशल संपादन के लिए स्वर्ण पदक, कोलकाता के प्रसिद्ध बड़ा बाजार कुमारसभा पुस्तकालय का ‘भाई हनुमानप्रसाद पोद्दार राष्ट्रसेवा सम्मान’, केंद्रीय हिंदी संस्थान का ‘गणेशशंकर विद्यार्थी पत्रकारिता सम्मान’।