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किसी भूले को ढब्बूजी राह बताते हैं तो किसी हारे को जीने की शक्ति भी देते हैं। लेकिन उनमें सबसे बड़ा गुण यह है कि वह जात-पाँत, ऊँच-नीच के भेदभाव नहीं मानते। यही कारण है कि ढब्बूजी के चाहनेवाले कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और भारत से लेकर अमेरिका, रूस, चीन तक फैले हुए हैं। इन लाखों प्रशंसकों में एक आप भी हैं। ढब्बूजी का आपको सलाम —आबिद सुरती
आबिद सुरती
जन्म : 1935 राजुला (गुजरात)।
शिक्षा : एस.एस.सी., जी.डी. आर्ट्स (ललित कला)।
प्रकाशन : अब तक अस्सी पुस्तकें प्रकाशित, जिनमें पचास उपन्यास, दस कहानी संकलन, सात नाटक, पच्चीस बच्चों की पुस्तकें, एक यात्रा-वृत्तांत, दो कविता संकलन, एक संस्मरण और कॉमिक्स। पचास साल से गुजराती तथा हिंदी की विभिन्न पत्रिकाओं और अखबारों में लेखन। उपन्यासों का कन्नड़, मलयालम, मराठी, उर्दू, पंजाबी, बंगाली और अंग्रेजी में अनुवाद। ‘ढब्बूजी’ व्यंग्य चित्रपट्टी निरंतर तीस साल तक साप्ताहिक ‘धर्मयुग’ में प्रकाशित।
दूरदर्शन, जी तथा अन्य चैनलों के लिए कथा, पटकथा, संवाद लेखन। अब तक देश-विदेशों में सोलह चित्र-प्रदर्शनियाँ आयोजित। फिल्म लेखक संघ, प्रेस क्लब (मुंबई) के सदस्य।
पुरस्कार : कहानी संकलन ‘तीसरी आँख’ को राष्ट्रीय पुरस्कार।
Email : aabidssurti@gmail.com
Web: www.aabidsurti.in
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