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चिप-चैप वैली की सशस्त्र मुठभेड़ के खिलाफ चीन ने आवाज उठाई। उसने स्पष्ट कहा कि चीन कभी भी हाथ-पर-हाथ रखे न बैठा रहेगा, अगर उसकी सीमा-रेखा के सैनिकों पर आक्रमणकारी हमले होते रहे। नई दिल्ली ने घोषणा की है कि 25000 स्क्वायर मीलों के क्षेत्र पर भारत ने कब्जा जमा लिया है। लद्दाख में तीन चौकियों के बाद अब चौथी चौकी पर कब्जा हुआ। इस सेक्टर में 60 नई सीमा-चौकियाँ स्थापित। भारत सरकार को चेतावनी दी जाती है कि वह खाई के किनारे पर है और अपनी पॉलिसी पर लगाम लगाने का वक्त समझ ले—‘पीपुल्स डेली’ ने यह धमकी दी।...हम पूरी गंभीरता से भारतीय अधिकारियों को सचेत करना चाहते हैं कि उनकी भलाई इसी में है कि वे हालात को गलत न समझ बैठें।
—इसी पुस्तक से
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‘62 की बातें’ नीलम सरन गौड़ के अंग्रेजी उपन्यास ‘स्पीकिंग ऑफ 62’ का हिंदी अनुवाद है, जो लेखिका ने स्वयं किया है। इस मनोरंजक उपन्यास में सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध को छह नटखट बच्चों की नजर से देखा गया है। छह बच्चे, जो युद्ध का मतलब समझने के लिए जूझ रहे हैं और अपने आसपास उससे होनेवाले असर को देख रहे हैं। कुछ ऐसे मुद्दों की भी चर्चा की गई है, जो आज भी मौजूद हैं, शायद और भी गंभीर रूप में।
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अनुक्रम
सफेद पत्थरों का रेगिस्तान —Pgs 1
चीनी मिट्टी की राजनीति —Pgs 16
रसोई दरबार —Pgs 23
शिशुपाल और शिशीफस के बारे में —Pgs 57
कुछ पीता, कुछ लाल —Pgs 77
चिडिंयाखाना —Pgs 97
भगवत प्रकाश और यंत्र-सेना की कहानी —Pgs 160
अक्टूबर का जाना —Pgs 117
नेहरू का मुलाकाती —Pgs 136
अंधेरी दीवाली —Pgs 156
चाइना कातिलाना —Pgs 180
माओ त्से तुंग के आदमखोर शेर —Pgs 215
सीज़ फायर —Pgs 226
नीलम सरन गौड़ अंगे्रजी की जानी-मानी लेखिका हैं। उनके चार उपन्यास और दो कहानी-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनके लेख, कॉलम और पुस्तक समीक्षाएँ देश-विदेश की पत्रिकाओं में छपती रही हैं। वे कैंट यूनिवर्सिटी, यू.के. और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, दिल्ली में राइटर-इन-रेजीडेंस रही हैं। हाल ही में उनके संपादन में इलाहाबाद शहर के इतिहास और संस्कृति पर एक सचित्र पुस्तक प्रकाशित हुई है। संप्रति इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य की प्रोफेसर हैं।