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इतिहास गवाह है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनंत महिलाओं ने अपने साहस व बहादुरी के बल पर देश की दशा व दिशा बदल दी। पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर क्रांतिकारी गातिविधियों में अभूर्तपूर्व योगदान दिया। शुरुआती दौर में रानी अवंती बाई, रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, अजीजन बाई, झलकारी बाई जैसी अनेक वीरांगनाओं ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध जंग में अपने पराक्रम से खुद को अमर कर लिया।
भारत के क्रांतिकारी आंदोलन में भी महिलाओं ने बड़ी भूमिका निभाई। मास्टर सूर्यसेन के नेतृत्व में कल्पना दास एवं प्रीती लता वाडेकर ने क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया था। सुनीति चौधरी, शांतिघोष और बीनादास ने भी क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लिया। लीलानाग नामक महिला ने 1923 में ‘दीपाली संघ’ की स्थापना की थी। इसमें युवतियों को शस्त्र चलाने और बम बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता था।
इस प्रकार भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई। वे घर की चारदीवारी से बाहर निकलीं और अपनी अपूर्व राष्ट्रीय भावना का परिचय दिया। कई ने तो देश की आजादी के लिए हथियार भी उठाए। उन असंख्य स्वतंत्रता सेनानी महिलाओं में से 75 स्वतंत्रता महिला सेनानियों के संघर्ष, उनके दारुण कष्ट और मातृभूमि पर उनकेबलिदानों को इस पुस्तक में याद किया गया है। उनके व्यक्तित्व व कृतित्व की कहानियाँ हम सबके लिए प्रेरणास्रोत हैं।
डॉ. ममता चंद्रशेखर एक शिक्षाविद्, लेखिका, विचारक, वक्ता, स्तोत्र साधक, शोधकर्ता व वर्तमान में राजनीति विज्ञान विभाग, श्री अटलबिहारी वाजपेयी शासकीय कला व वाणिज्य महाविद्यालय, इंदौर, मध्य प्रदेश की विभागाध्यक्ष व प्राध्यापक हैं। वे डी-लिट उपाधि से सम्मानित हैं।
रचना-संसार : 17 पुस्तकें, 200 से ज्यादा आलेख, शोधपत्र, कहानियाँ व कविताएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। तीन पुस्तकें जर्मन व फ्रेंच भाषाओं में अनुवादित।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ पॉलिटिकल साइंस, केसेटसर्ट यूनिवर्सिटी, बैंकॉक और अंतरराष्ट्रीय फोरम ऑफ राजनीति विज्ञान, न्यूयॉर्क की एडीटोरियल सदस्य हैं। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, नई दिल्ली के रचनात्मक लेखन पुरस्कार व राष्ट्रीय अल्मा अवॉर्ड व रानी दुर्गावती अवॉर्ड से सम्मानित।