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अस्सी दिन में दुनिया की सैर—जूल्स वर्नफिलियास फॉग ने अपनी विश्व यात्रा 80 दिनों में पूरी की थी। उन्होंने इसके लिए हर साधन का उपयोग किया—स्टीमर, रेलवे, सामान ढोनेवाली गाड़ी, व्यापारिक जहाज, बर्फ पर चलनेवाली गाड़ी और हाथी इत्यादि।
फॉग ने 80 दिनों में पूरा विश्व भ्रमण करने के ठीक 2 दिन बाद शादी कर ली, जो इस यात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। विश्वविख्यात कथा-शिल्पी जूल्स वर्न ने इस रोमांचक यात्रा का बड़ा ही मनोरंजक वर्णन किया है। अनेक सभ्यता-संस्कृतियों, स्थान-प्रदेशों एवं नाना वृत्ति-प्रकृति के लोगों का वर्णन बड़ा ही आह्लादकारी है।विज्ञान कथाओं के महान् लेखक जूल्स वर्न की मनोरंजन से भरपूर अद्भुत यात्रा-कथा।
जन्म 8 फरवरी, 1828 को पश्चिमी फ्रांस के समुद्र-तटीय के शहर नांत्स में हुआ। जूल्स वर्न पाँच भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। उनका बचपन अपने माता-पिता के साथ बीता। नौ वर्ष की उम्र में उन्हें और उनके भाई पॉल को सेंट डोनेशियन कॉलेज के बोर्डिंग स्कूल में भरती कराया गया। जूल्स वर्न घुमक्कड़ी के शौकीन थे।
प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद जूल्स वर्न वकालत की पढ़ाई के लिए पेरिस चले गए। वहाँ उनका रुझान नाटक-लेखन की ओर बढ़ता गया। उन्होंने थिएटर के लिए अनेक नाटक लिखे। साथ ही बड़े शौक से कुछ यात्रा-कथाएँ भी लिखीं, जिनमें उनका मन रमने लगा।
अमेरिकी लेखक एडगर एलन पो की कहानियों से जूल्स वर्न बहुत प्रभावित हुए। वो अपनी कहानियों में विज्ञान की संभावनाओं का प्रयोग करते थे। उनकी कहानी ‘द बैलून हॉक्स’ से प्रभावित होकर जूल्स वर्न ने आगे चलकर ‘फाइव वीक्स इन अ बैलून’ और ‘अराउंड द वर्ल्ड इन एटी डेज’ जैसी प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं।
जूल्स वर्न ने अपना पहला उपन्यास ‘ए वॉएज इन अ बैलून’ सन् 1851 में लिखा। जूल्स वर्न को अद्भुत रोमांचक यात्रा-कथाओं का शिल्पी माना जाता है।