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प्रस्तुत कहानी-संग्रह की कहानियों में जीवन के विभिन्न रंग दृष्टिगत होते हैं। ‘आधी दुनिया’ में रत्ना की समाज-सेवा की लगन, एक मजबूर औरत की अरथी उठने का दर्द उन समाज-सेवी संस्थानों पर व्यंग्य है, जो एक विशेष आभिजात्य वर्ग की महिलाओं के लिए केवल फैशन परेड और विदेशों में घूमने का साधन बनी हुई हैं। जहाँ ‘कान खिंचाई’ में बच्चे बहादुरी का मीठा फल चख पाएँगे वहीं ‘लगन’ में विपरीत परिस्थितियों में भी लक्ष्य-प्राप्ति का संकल्प। ‘घोंसला’ में टूटते समाज में एकाकीपन का दर्द है तो ‘औलाद’ में अपने वतन में बसने की हौंस। इस प्रकार, नव रंगों में रची ये कहानियाँ अपनी कारुणिकता, मार्मिकता व रोचकता से पाठकों को एक नई दृष्टि देती हैं।
श्रीमती रश्मि गौड़ का जन्म उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में हुआ। सन् 1959 में पिता श्री आनंद प्रकाश जैन ‘पराग’ के प्रधान संपादक होकर मुंबई चले गए, अत: इनकी शिक्षा-दीक्षा मुंबई में साहित्यिक परिवेश में हुई। विवाहोपरांत पुन: उत्तर प्रदेश में आकर बस गईं। पति श्री एस.पी. गौड़ उ.प्र. संवर्ग के आई.ए.एस. अधिकारी रहे, अत: सेवाकाल में काफी घूमना हुआ; खट्टे-मीठे अनुभवों के साथ जिंदगी चलती रही। कालांतर में अपने दोनों पुत्रों के बड़े होने पर अपने अंतर्मन की कोमल भावनाओं को कागज पर उतारा। सन् 1993 में पहली कहानी ‘गठरी’ ‘सरिता’ में छपी। उसके बाद ‘साहित्य अमृत’, ‘मुक्ता’ जैसी राष्ट्रीय पत्रिकाओं में अनेक कहानियाँ प्रकाशित हुईं। कुछ बाल कहानियाँ दिल्ली के पाठ्यक्रम में ‘रैपिड रीडर’ में संकलित हैं। ‘आधी दुनिया’ कहानी संग्रह सन् 2006 में ‘विद्या विहार’ से प्रकाशित हुआ, जो खूब सराहा गया।