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अपने आपको काम में व्यस्त कीजिए और अपने जीवन को एक स्वरूप दीजिए। यह मत सोचिए कि कुछ करने से पहले आपको ब्रह्मांड की तमाम पहेलियों को सुलझाना जरूरी है। उन पहेलियों की चिंता मत कीजिए और अपने सामने पड़े काम पर ध्यान दीजिए। अपने अंदर छिपे उस महान् जीवन-सिद्धांत को उसमें लगा दीजिए, जो प्रकट होने के लिए लालायित है। इस भ्रम में मत रहिए कि आपके शिक्षक या गुरु ने उस पहेली को सुलझा लिया है।
यदि कोई उसे सुलझा लेने की बात करता है तो वह झूठ बोल रहा है और साहस बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। अबूझ पहेलियों और सिद्धांतों की चिंता मत कीजिए, काम कीजिए और जीना शुरू कीजिए। इन सिद्धांतों के बुलबुलों को फोड़ने का सबसे नायाब तरीका है—हँसना। हँसी एक ऐसी चीज है, जो हमें पागलपन से बचाती है। हास्य रस इनसान के लिए प्रभु का सर्वोत्तम उपहार है।
अमेरिकी लेखक विलियम वॉकर एटकिंसन (1862-1932) का जन्म बाल्टीमोर में हुआ था और वे पेंसिल्वेनिया में एक सफल वकील थे, लेकिन अपने पेशे के तनाव के कारण वह नव विचार धार्मिक आंदोलन से जुड़ गए। 1901 से 1905 तक उन्होंने लोकप्रिय पत्रिका ‘न्यू थॉट’ और 1916 से 1919 तक ‘एडवांस्ड थॉट’ जर्नल के संपादक के रूप में कार्य किया। उन्होंने ‘द फिलॉसोफीज ऐंड रिलीजंस ऑफ इंडिया’, ‘आर्केन फॉर्मूला ऑर मेंटल एलकेमी ऐंड व्रिल’ या ‘वाइटल मैगनेटिज्म’ समेत नव विचार की दर्जनों पुस्तकें छद्म नामों से लिखीं, जिनमें से कुछ आज भी अज्ञात ही हैं।