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आखिरी चिट्ठी’ प्रख्यात कथाकार रामदरश मिश्र की कुछ लंबी कहानियों का संग्रह है। ये कहानियाँ कहानी और उपन्यास के बीच एक पुल बनाती हैं। मिश्रजी ने छोटी कहानियाँ भी लिखी हैं। मझोले कद की भी लिखी हैं और दस के लगभग लंबी कहानियों का भी सृजन किया है। मिश्रजी का अनुभव-जगत् बहुत व्यापक है। यह अनुभव-जगत् छोटे जीवन-खंड का भी है और बड़े तथा संश्लिष्ट जीवन-खंड का भी। इन लंबी कहानियों में मिश्रजी ने अलग-अलग प्रकार के चरित्रों एवं उनसे संबद्ध विविध समस्याओं को रूपायित किया है। इनमें शहर और गाँव दोनों के परिवेश हैं। गाँव की अनुभव-संपदा लेकर निकले हुए मिश्रजी ने शहरी जीवन का भी सुख-दु:ख गहरे जिया है। इनकी कहानियों में ग्राम-परिवेश की मुख्यता रही है। शहरी जीवन की कहानियों में भी गाँव आता-जाता रहता है। परिवेश गाँव का हो या शहर का, मिश्रजी की कहानियाँ गहरे से गुजरती हैं। वे संवेदनाओं, सोच, समस्याओं और प्रसंगों के संश्लेष से एक ऐसा लोक रचती हैं, जो पाठकों को अपना लोक प्रतीत होता है। लेखक की प्रगतिशील दृष्टि व्यक्ति और समाज के सुख-दु:ख, संघर्ष, जिजीविषा, संबंधों और मानवीय राग को इस तरह रूपायित करती है कि सामंतीय और पूँजीवादी विसंगतियों का अनावरण होता है और जीवन-मूल्यों की छवियाँ दीप्त हो उठती हैं।
जन्म : 15 अगस्त, 1924 को गोरखपुर (उ.प्र.) के डुमरी गाँव में।
शिक्षा : एम.ए., पी-एच.डी.।
प्रकाशित पुस्तकें : बीस काव्य-संग्रह, चौदह उपन्यास, इक्कीस कहानी-संग्रह, दस आलोचना पुस्तकें, तीन ललित निबंध-संग्रह, तीन यात्रा-वृत्त, तीन संस्मरणात्मक पुस्तकें, दो आत्मकथात्मक ग्रंथ, चार संपादित पुस्तकें, ग्यारह समीक्षात्मक कृतियाँ, दो डायरी पुस्तकें, एक बाल साहित्य आदि। कई कृतियाँ पुरस्कृत।
सम्मान : ‘शलाका सम्मान’, ‘साहित्यकार सम्मान’, ‘साहित्य भूषण सम्मान’, ‘भारत भारती सम्मान’, ‘सारस्वत सम्मान’, ‘व्यास सम्मान’ सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित।
संप्रति : दिल्ली विश्वविद्यालय (हिंदी विभाग) के प्रोफेसर पद से सेवामुक्त।