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अरे ! ये क्या हुआ?''
“क्या हुआ सोना-मोना को ? ये खून से लथ-पथ कैसे हो गईं?'' पापा-मम्मी सिर पटक-पटककर रो रहे हैं। अपनी पोतियों के लिए। हमारा तो वंशनाश हो गया भगवान् ! हमारी बहू अब कभी माँ नहीं बन सकती। सोचा था, दोनों पोतियों को देखकर जी लेंगे, सत्यानाश हो उस ट्रक वाले का, जिसने इनकी ऑटो को टक्कर मार दी। अब हम क्या करें भगवान्, किसके सहारे जिएँ?'' मम्मी को रोते उसने पहली बार देखा था। | बड़ी कड़क औरत हैं, आँसुओं की इतनी मजाल कहाँ कि उनकी पलकों की देहरी लाँघ जाएँ। वह रोना चाहती थी अपनी सोना-मोना के लिए, किंतु कंठ से आवाज । नहीं निकल रही थी। उसने पूरा जोर लगाया “हाय मेरी बच्चियाँऽ! अब मैं किसके लिए जिऊँगी? मुझे उठा ले भगवान् !'' उसने अपने हाथों से कसकर अपना गला दबाने का प्रयास किया। किंतु कुछ न हो सका।“सोना-मोना के लिए तो इतना रो रही है और जिसे गर्भ में ही मार दिया उसका क्या ? ले भोग बेटी को मारने की सजा। अब इस जन्म में तुझे कोई माँ नहीं कहेगा।'' एक पहचानी सी आवाज गूंजी थी उसके कानों में, “हाँ! मैंने पाप तो बहुत बड़ा किया, परंतु इसमें इनका क्या दोष? मुझे क्षमा कर दो, हे ईश्वर ! मेरी सोना-मोना को मेरे पापों की सजा मत दो, उन्हें जीवनदान दे दो!''
-इसी संग्रह से
बदलते भारतीय समाज में पैदा हो रही नई चुनौतियों और विसंगतियों को पुरजोर ढंग से उठाकर उनका समाधान बतानेवाली प्रेरक, मनोरंजक एवं उद्वेलित कर देनेवाली पठनीय कहानियाँ
तुलसी देवी तिवारी जन्म: 16 मार्च, 1954।
शिक्षाः स्नातकोत्तर, हिंदी साहित्य, समाजशास्त्र, बी.टी.आई. प्रशिक्षित।
रचना-संसार : पिंजरा, परत-दरपरत, सदर दरवाजा, आखिर कब तक?, भाग गया मधुकर, राजलक्ष्मी, शाम के पहले की स्याही, केजा (छत्तीसगढ़ी भाषा में), रैन बसेरा, इंतजार एक औरत का (कहानी संग्रह); कमला (एक संघर्षरत स्त्री की गाथा) (उपन्यास); सुख के पल सहित चार यात्रा संस्मरण; ग्यारह बाल पुस्तकें।
सम्मान : छत्तीसगढ़ी राजभाषा सम्मान, न्यू ऋतंभरा कबीर सम्मान, राज्यपाल शिक्षक सम्मान, छत्तीसगढ़ीरत्न, राष्ट्रपति पुरस्कार सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों से विभूषित । राष्ट्रीयअंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों, सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, सेवा कार्यों आदि के लिए शताधिक प्रमाण-पत्र। राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में सतत प्रकाशन। संपर्क : मोबा. 9907176361
इ-मेल : tulsi1954march@gmail.com