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आज बचपन के गलियारे में झाँकती हुई ठीक-ठीक जान पाती हूँ कि मार खाकर घंटों रोनेवाली वह लापरवाह लड़की हर वक्त जिस सपनीली दुनिया में जीती थी, वहाँ की एकमात्र सहचरी बहुत सालों तक घर-आँगन में फुदकने वाली गौरैया ही थी। जीवन की कठिन या क्रूरतम सच्चाइयाँ हमें तोड़ती-मरोड़ती हैं और बदल देती हैं। बाहर की दुनिया में हम सामान्य बने रहकर चलते रहते हैं। आज सोचती हूँ, ठीक इसी टूटन के समानांतर जीवन की ये सच्चाइयाँ हमें बहुत ही पुख्ता डोर से बाँधती, जोड़ती और बनाती भी रहती हैं, एकदम परिपक्व। अचानक ऐसी ही परिस्थितियों के बीच मैंने खुद को लापरवाही की दुनिया से अलग जिम्मेदारी से भरपूर सख्त जमीन पर खड़ा पाया। बाहर की यात्रा निस्संदेह बहुत कठिन थी, पर भीतर जो यात्रा चल रही थी, वह बहुत सुकून देने वाली थी। मनचाहे रंगों से सजाकर मैंने उस भीतरी यात्रा को भरपूर जीना, किशोरावस्था में ही सीख लिया था, जो आज भी कायम है। जब भी बाहर की ऊबड़-खाबड़ परिस्थितियों से कदम लड़खड़ाते, अंदर स्वतः प्रवहमान शब्द मेरी गलबहियाँ थामे रहते।
—इसी पुस्तक से
मुक्ति शाहदेव
शिक्षा : हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर, राँची विश्वविद्यालय, राँची। मानसिक मंदता पर विशेष बी.एड. प्रशिक्षण।
कृतित्व : दूरदर्शन केंद्र, राँची में आकस्मिक उद्घोषिका व समाचार वाचिका एवं स्थानीय समाचार-पत्र ‘झारखंड जागरण’ में उप-संपादक के पद से जीविकोपार्जन की शुरुआत।
स्थानीय ब्रिजफोर्ड सीनियर सेकेंडरी स्कूल, तुपुदाना में हिंदी अध्यापन एवं सेकेंडरी सेक्शन इनचार्ज के पद पर 18 वर्षों तक कार्यरत।
प्रकाशन : दो साझा संग्रह, ‘आँगन की गौरया’ प्रथम काव्य-संग्रह तथा पत्रिकाओं व समाचार-पत्रों में कविता व कहानी प्रकाशित। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन केंद्र, राँची से कविताएँ व कहानियाँ प्रसारित।
संप्रति : सरला बिरला पब्लिक स्कूल, सीनियर सेक्शन, राँची में हिंदी अध्यापन।
संपर्क : एन.एस.एम. सर्विसेज, 76, सर्कुलर रोड, नगरा टोली, राँची-834001
इ-मेल :
muktishahdeo17@gmail.com