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कहानी में प्रायः किसी-न-किसी रूप में समाज और मानवीय चिंताओं एवं सरोकारों का लेखा-जोखा रहता है। कहानी मन की गहराइयों और स्वयं को समझने का माध्यम बनती है, तो साथ ही एक अनोखी, अनकही एवं अनछुई झटपटाहट की अभिव्यक्ति को भी स्वर देती है। कहानी अपने तेवर और कलेवर में जिन तथ्यों तथा कथ्य को उघाड़ती, पछाड़ती एवं समेटती चलती है, वह सत्य से भी अधिक सत्य होते हैं। अतः सृजनधर्मिता से गुजरी हुई हर कहानी जीवन की हर संभावना में हस्तक्षेप कर जीवन को सँवारती है, जीवन को रचती है और उसे नया रूप देती है।
अनीता प्रभाकर समाज में सदियों से पसरी पितृसत्तात्मक प्रवृत्तियों के चलते औरत के प्रति शोषण, उपेक्षा, उत्पीड़न, अत्याचार को रेखांकित करते हुए उसके विरुद्ध प्रतिरोधात्मक स्वरूप का संघर्ष करने के लिए उसे आगे बढ़ाती हैं। एक ओर कामकाजी औरतों की बढ़ती संख्या के कारण उनकी बढ़ती जिम्मेदारियाँ हैं, तो दूसरी ओर पितृसत्ता के परंपरागत षड्यंत्रों के बदलते रूपों के प्रति उनमें सजगता आई है और वे उसके विरुद्ध विद्रोह करती दिखाई देती हैं। इन कहानियों का एक सकारात्मक पहलू यह भी है कि इनमें पुरुष में भी परिवर्तन आता दिखाई देता है। इस तरह लेखिका का मानव की संवेदना और मार्मिकता में अटूट विश्वास दिखाई देता है।
पठनीयता एवं रोचकता से भरपूर हर आयु वर्ग के पाठकों के लिए मर्मस्पर्शी कहानियों का संग्रह।
शिक्षा : एम.ए. (हिंदी ऑनर्स), बी.एड.।
कृतित्व : संस्कार भारती संस्था के माध्यम से साहित्य व समाज की सेवा। हिंदी की विभिन्न पत्रिकाओं में कहानियाँ, कविताएँ व लेख प्रकाशित। अखिल भारतीय काव्य संकलन ‘शतरूपा’में कविताएँ सम्मिलित।
आकाशवाणी से प्रसारित नाटकों में अभिनय; साथ ही कहानियाँ व वार्त्ताएँ प्रसारित। आकाशवाणी के ‘विद्यार्थी’ कार्यक्रम में हिंदी शिक्षिका के रूप में शिक्षण एवं वार्त्ताओं का प्रसारण।
पुरस्कार : साप्ताहिक हिंदुस्तान की बाल कहानी प्रतियोगिता में कहानी पुरस्कृत। नारी अस्मिता को बल देने के लिए आयोजित विमल अंतरराष्ट्रीय कहानी प्रतियोगिता में कहानियाँ (कहाँ जाओगी तथा अपराजेय) पुरस्कृत। सूर्य प्रकाशन तथा हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा ‘हिंदी शिक्षिका सम्मान’।
संप्रति : हिंदी भाषा प्रवक्ता पद से सेवा-निवृत्त।