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आमतौर पर बच्चे विज्ञान को कठिन विषय समझते हैं। वे समझते हैं कि विज्ञान में बहुत पढ़ना पड़ता है, प्रयोग करने पड़ते हैं और कई बार घर या स्कूल से बाहर—बगीचों, जंगलों आदि में—घूमना पड़ता है। पर न तो विज्ञान के प्रयोग हमेशा बहुत कठिन होते हैं और न ही सब प्रयोगों को करने से पहले बहुत अध्ययन कर जरूरत होती है।
प्रयोग करने के लिए कई बार मॉडलों की जरूरत होती है। ये मॉडल सरल यंत्र होते हैं और इन्हें आसानी से बनाया जा सकता है (वैसे इनको बनाना भी अपनेआप में बहुत रोचक प्रयोग होते हैं)। इन्हें तुम उन चीजों से बना सकते हो जो आसानी से बाजार में मिल जाती हैं और जिनकी लागत भी ज्यादा नहीं होती।
जन्म : 8 दिसंबर, 1929 ।
आरंभिक शिक्षा जबलपुर ( मध्य प्रदेश) में । कुछ वर्षों तक रसायनशास्त्र में शोध करने के पश्चात् हिंदी में विज्ञान लेखन । 1958 से ' विज्ञान प्रगति ' ( कौंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च की हिंदी विज्ञान - मासिक) से संबद्ध; 1964 से पत्रिका का संपादन । दिसंबर 1989 में संपादक पद से अवकाश ग्रहण ।
हिंदी में विभिन्न वैज्ञानिक और तकनीकी विषयों पर प्रकाशित पुस्तकों और पत्रिकाओं के विवरणों का आकलन और तृतीय विश्य हिंदी सम्मेलन के अवसर पर ' हिंदी में वैज्ञानिक और तकनीकी प्रकाशन निदेशिका ' का प्रकाशन ।
विविध वैज्ञानिक विषयों पर हिंदी में सैकड़ों लेख प्रकाशित और रेडियो वार्त्ताएँ प्रसारित । कुछ पुरस्कृत पुस्तकें है - अनंत आकाश : अथाह सागर (यूनेस्को पुरस्कार, 1969), सूक्ष्म इलेक्ट्रानिकी (विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, 1987), प्रदूषण : कारण और निवारण (पर्यावरण और वन मंत्रालय, भारत सरकार, 1987), आओ चिड़ियाघर की सैर करें (हिंदी अकादमी, दिल्ली, 1985 - 86), विज्ञान परिषद् इलाहाबाद द्वारा उत्कृष्ट संपादन हेतु सम्मानित ।