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"एक स्मार्ट निवेशक को चाहिए कि वह अपने निवेश में विविधता रखे; क्योंकि विविधता आपको भविष्य में होनेवाले संभावित नुकसानों से बचा सकती है। स्मार्ट निवेशक कभी भी तर्कहीन मुनाफे की तलाश नहीं करता; बल्कि उसका ध्यान सुरक्षित, स्थिर व नियमित रिटर्न पर होता है।
यदि आप स्मार्ट व बुद्धिमान निवेशक बनना चाहते हैं तो अपनी स्वयं की शोध पर भरोसा करें और बाजार में चल रही अफवाहों एवं टिप्स को पूरी तरह से नजरअंदाज करें। शेयर बाजार में अच्छा प्रदर्शन करनेवाली और बुरा प्रदर्शन करनेवाली कंपनियाँ होती हैं, परंतु वास्तव में अच्छे शेयर जैसी कोई चीज नहीं होती। शेयर का वह प्राइस अच्छा होता है, जिस पर उसका वैल्युएशन सस्ता और भविष्य में ग्रोथ की संभावना वाला हो।
आपको शेयर बाजार में एक निवेशक की तरह कार्य करना चाहिए, न कि एक सट्टेबाज के रूप में। शेयर बाजार में आपको अपनी पूँजी को छोटे हिस्सों में बाँटकर निवेश करना आवश्यक है, ताकि आप कभी भी अपना सारा पैसा न गँवाएँ।
स्टॉक मार्केट में उतार-चढ़ाव होता रहता है और निवेशक इस उतार-चढ़ाव का लाभ उठाना चाहते हैं। इसी वजह से आम निवेशक जब बाजार बढ़ रहा होता है, तब बाजार और भी बढ़ेगा, इस उम्मीद में महँगे दाम पर भी शेयर खरीद लेते हैं तथा जब बाजार गिरने लगता है तो वे स्टॉप लॉस की अवधारणा के कारण सस्ते में शेयर बेच देते हैं; परंतु ऐसा करके वे अपने आप को एक निवेशक की जगह सट्टेबाज में तब्दील कर देते हैं।"
भारतीय संस्कृति के अध्येता और संस्कृत भाषा के विद्वान् श्री सूर्यकान्त बाली ने भारत के प्रसिद्ध हिंदी दैनिक अखबार ‘नवभारत टाइम्स’ के सहायक संपादक (1987) बनने से पहले दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। नवभारत के स्थानीय संपादक (1994-97) रहने के बाद वे जी न्यूज के कार्यकारी संपादक रहे। विपुल राजनीतिक लेखन के अलावा भारतीय संस्कृति पर इनका लेखन खासतौर से सराहा गया। काफी समय तक भारत के मील पत्थर (रविवार्ता, नवभारत टाइम्स) पाठकों का सर्वाधिक पसंदीदा कॉलम रहा, जो पर्याप्त परिवर्धनों और परिवर्तनों के साथ ‘भारतगाथा’ नामक पुस्तक के रूप में पाठकों तक पहुँचा। 9 नवंबर, 1943 को मुलतान (अब पाकिस्तान) में जनमे श्री बाली को हमेशा इस बात पर गर्व की अनुभूति होती है कि उनके संस्कारों का निर्माण करने में उनके अपने संस्कारशील परिवार के साथ-साथ दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज और उसके प्राचार्य प्रोफेसर शांतिनारायण का निर्णायक योगदान रहा। इसी हंसराज कॉलेज से उन्होंने बी.ए. ऑनर्स (अंग्रेजी), एम.ए. (संस्कृत) और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से ही संस्कृत भाषाविज्ञान में पी-एच.डी. के बाद अध्ययन-अध्यापन और लेखन से खुद को जोड़ लिया। राजनीतिक लेखन पर केंद्रित दो पुस्तकों—‘भारत की राजनीति के महाप्रश्न’ तथा ‘भारत के व्यक्तित्व की पहचान’ के अलावा श्री बाली की भारतीय पुराविद्या पर तीन पुस्तकें—‘Contribution of Bhattoji Dikshit to Sanskrit Grammar (Ph.D. Thisis)’, ‘Historical and Critical Studies in the Atharvaved (Ed)’ और महाभारत केंद्रित पुस्तक ‘महाभारतः पुनर्पाठ’ प्रकाशित हैं। श्री बाली ने वैदिक कथारूपों को हिंदी में पहली बार दो उपन्यासों के रूप में प्रस्तुत किया—‘तुम कब आओगे श्यावा’ तथा ‘दीर्घतमा’। विचारप्रधान पुस्तकों ‘भारत को समझने की शर्तें’ और ‘महाभारत का धर्मसंकट’ ने विमर्श का नया अध्याय प्रारंभ किया।