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हमें सही मार्ग पर बढ़ने के लिए अपना क्रोध, अहं, असत्यता, छलावा—सब छोड़ना होगा। इन दुर्गुणों को छोड़ते हुए हम स्वयं के अधिक निकट आ जाते हैं। इस तरह हम उसे वापस जगाते और जलाते हैं जो हमारे अंदर था, लेकिन लंबे समय तक गलत बोझ एकत्रित करने से जो दफन हो गया था।
हमारा मस्तिष्क भी एक सूटकेस की तरह ही है। कभी-न-कभी यह निर्णय लेना होगा कि आपको क्या आगे ले जाना है और क्या छोड़ना है। आपको अपने मन के सूटकेस से अतिरिक्त भार हटाने की जरूरत है। प्रतिशोध, कड़वी यादों, चिंताओं और नकारात्मक विचारों का बोझ त्यागने की आवश्यकता है और सामानवाले सूटकेस की तरह, आपके दिमाग में मौजूद विचार भी यह दरशाएँगे कि आपका व्यक्तित्व किस प्रकार का है।
आशा हमें हमेशा आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित करती है। यहाँ तक कि बुरे समय में भी आशा ही हमें जिलाए रखती है। आशा हमें एक बेहतर कल में विश्वास करने के लिए प्रेरित करती है और आशा ही हमें सभी मुश्किलों का सामना करने के लिए हिम्मत देती है।
—इसी पुस्तक से
प्रख्यात सिने कलाकार और रंगकर्मी अनुपम खेर के व्यापक अनुभव का निचोड़ है यह पुस्तक। कुल पचास अध्यायों में उन्होंने जीवन के सभी रंगों को समेट लिया है इस अमृतघट में। आपके भीतर छिपी आपकी अच्छाइयों, सद्गुण और सत्वृत्ति को उजागर करने का विनम्र प्रयास है यह पुस्तक, जिसे पढ़कर आपको लगेगा—आप खुद ही Best हैं।
प्रतिष्ठित फिल्म अभिनेता व रंगकर्मी अनुपम खेर को 25 वर्षों के लंबे फिल्मी कॅरियर में 450 से अधिक फिल्में करने का अनुभव है। उन्होंने ‘सारांश’, ‘तेजाब’, ‘डैडी’, ‘कर्मा’, ‘हम’, ‘सौदागर’, ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे’, ‘हम आपके हैं कौन’, ‘खोसला का घोंसला’, ‘ए वेंस्डे’ के अलावा असंख्य फिल्मों में अपने जोरदार अभिनय के द्वारा अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। एक प्रेरक वक्ता और थिएटरकर्मी के रूप में उन्होंने अपार ख्याति अर्जित की है। उनके अभिनव प्रयोग एकल नाटक ‘कुछ भी हो सकता है’ ने लोकप्रियता के शिखर को छुआ है। वे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों से विभूषित हो चुके हैं। इंडियन सेंसर बोर्ड तथा नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के अध्यक्ष रहने के अलावा वे अनेक महत्त्वपूर्ण पदों को सुशोभित कर चुके हैं। वे एक ऐक्टिंग स्कूल ‘ऐक्टर थियेटर्स’ भी संचालित करते हैं।