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बीमारी केवल शारीरिक ही नहीं हुआ करती, अगर व्यक्ति मानसिक बीमारियों जैसे-काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि से ग्रस्त हैं तो भी वह बीमार ही माना जाएगा। अत: पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति वह है, जो शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से स्वस्थ है।
बीमारियों का कारण हम स्वयं बनते हैं। शारीरिकबीमारियों केनिवारण केलिए 'प्रात: भ्रमण' तथा 'योग' को दिनचर्या में अपनाना जरूरी है। इससे बिना दवा खाए भी व्यक्ति स्वस्थ रह सकता है।
प्रस्तुत पुस्तक में विद्वान् लेखक ने यह बताया है कि स्वस्थ रहने के लिए प्रात: भ्रमण कैसे करना चाहिए भोजन तथा आहार कैसा होना चाहिए तथा कब करना चाहिए दांपत्य जीवन को कैसे सफल बनाया जा सकता है, वृद्धावस्था की समस्याएँ एवं उनका समाधान, सुख क्या है और कहाँ?, जल ही जीवन है आदि।
स्वस्थ रहने के लिए सबसे अहम बात यह है कि हम उन चीजों के सेवन से परहेज करें, जिनकी हमें जरूरत नहीं है, जो हानिकारक हैं। पान, पान मसाला, खैनी, शराब, मांसाहार के बिना भी हम अधिक स्वस्थ बने रह सकते हैं, अत: इनका सेवन करकेबीमार क्यों पड़े?
यह हमेशा ध्यान रखें कि स्वस्थ रहना प्राकृतिक है, अस्वस्थ रहना अप्राकृतिक। आज हर कोई-क्या गरीब, क्या अमीर-अपने स्वास्थ्य को लेकर चिंतित है। ऐसे में इस पुस्तक की उपयोगिता और बढ़ जाती है। आशा है, सुधी पाठक पुस्तक में दिए सुझावों को अपने जीवन में अपनाकर पूर्ण स्वस्थ तथा निरोग रह सकते हैं।
दीनानाथ झुनझुनवाला
जन्म:22 जनवरी, 1934 को भागलपुर (बिहार) में।
शिक्षा:औद्योगिक रसायन में स्नातक (काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी)।
कृतित्व:'अमृत कलश', 'हास्य कलश', 'प्रेरक चरित्र', 'आपका स्वास्थ्य आपके हाथ', प्रेरक प्रसंग, 'सफल उद्यमी कैसे बनें', 'जीवन के सूत्र', 'वचनामृत', 'वृद्धावस्था की समस्या एवं समाधान', 'इंद्रधनुष' तथा 'प्रेरणास्रोत' कृतियाँ प्रकाशित।
इसके अलावा चार दशकों से पत्र-पत्रिकाओं में समसामयिक विषयों पर सतत लेखन। आकाशवाणी, दूरदर्शन, विश्वविद्यालय, विद्यालय एवं सभाओं में सामयिक विषयों पर वार्त्ता। विभिन्न सभा-सोसाइटियों, औद्योगिक संगठनों में सक्रिय सहयोग एवं सामाजिक कार्यों में क्रियाशील।