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हर व्यक्ति अपने जीवन में दुविधा के दौर से गुजरता है। लेखक ने अपने विचारों और अनुभवों की साझेदारी द्वारा युवाओं को परेशान करनेवाली स्थिति से निपटने में मदद करने का प्रयास किया है, जो नौकरी की तलाश में, परीक्षा या प्रतियोगिता-परीक्षा में असफलता से पैदा होती है और पीडि़त व्यक्ति को जीने का कोई कारण नहीं दिखाई देता है।
प्रस्तुत पुस्तक ‘आत्महत्या?’ का उद्देश्य यह बताना है कि परीक्षा, प्रतियोगिता-परीक्षा में असफल हो जाने के बाद जीवन का अंत करना समस्या का समाधान नहीं है। इस पुस्तक के माध्यम से इस सामाजिक बुराई को समाप्त करने का प्रयास किया गया है, जो अनेक युवाओं का जीवन ले लेती है और अनेक घरों की रोशनी को बुझा देती है।
प्रतिदिन अखबार इस तरह की खबरों से भरे रहते हैं कि पढ़ाई से बढ़े तनाव के कारण कुछ युवाओं ने अपने जीवन का अंत कर दिया और अपने पीछे बिलखते माता-पिता और परिवार को छोड़ दिया। इस स्थिति का अंत होना चाहिए—और यही इस पुस्तक का उद्देश्य है।
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अनुक्रम
प्राकथन — 7
भूमिका — 11
आभार — 13
परिचय — 15
1. समस्या कितनी बड़ी है? — 23
2. मौत को गले लगाने के कारण — 52
3. सफलता के मार्ग में साधन बाधक नहीं — 78
4. लड़कियों में साक्षरता बढ़ाने के प्रयास के सामाजिक आयाम — 87
5. छात्रों/युवाओं में अत्यधिक तनाव के दुष्प्रभाव — 111
6. विफलता से परे जीवन — 118
7. युवाओं को तनाव से बचाने का सामाजिक दायित्व — 140
संजय कुमार सिन्हा का जन्म 30 दिसंबर, 1966 को पटना में हुआ। उन्होंने पटना सेंट जेवियर्स स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा; दिल्ली के एयर फोर्स स्कूल से 12वीं; 1987 में दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से इतिहास में स्नातक (ऑनर्स) तथा 1989 में जे.एन.यू. से समाज शास्त्र में स्नातकोत्तर किया।
पेशे से पत्रकार संजय कुमार सिन्हा पिछले 21 सालों से देश की उत्कृष्ट समाचार एजेंसी पी.टी.आई. में कार्यरत रहकर वर्तमान में बिहार ब्यूरो प्रमुख के पद पर आसीन हैं।
सामाजिक विषयों पर विशेष रुचि रखनेवाले संजय कुमार सिन्हा ने इस पुस्तक में नौजवानों के परीक्षा और प्रतियोगिता में असफल होने के कारण अत्यधिक मानसिक तनाव में रहने और उनके निदान पर प्रकाश डाला है।