₹350
"नासिरा शर्मा के लेखन का सबसे बड़ा गुण यह है कि उनके पात्र जीवंत और प्रामाणिक लगते हैं, जिनसे पाठक की भेंट किसी भी शहर या गली में हो जाती है। भारतीय परिवेश पर लिखी उनकी कहानियों में अतीत, वर्तमान गले मिलता नजर आता है और भविष्य की ओर भरपूर संकेत देता है। उनकी भाषा हिंदी, उर्दू, फारसी शब्दों से अपना एक मुहावरा गढ़ती है और सभी तरह के पाठकों को अपना बना लेती है।
विदेश यात्रा पर लिखी उनकी कहानियों के चरित्र अजनबी नहीं लगते, क्योंकि उसमें वह इनसानी कष्टों व भावनों का समावेश होता है, जो शाश्वत सत्य है। उनके लेखन में समय का सरगम धीमे सुरों में जरूर बजता है, मगर उनके उठाए तीखे प्रश्न पाठकों को सचेत करते हैं और उनको उनके कर्तव्यों के प्रति जागरूक बनाते हैं।"
जन्म : 1948, इलाहाबाद में।
शिक्षा : फारसी भाषा और साहित्य में एम.ए.।
रचना-संसार : ‘ठीकरे की मँगनी’, ‘पारिजात’, ‘शाल्मली’, ‘ज़िंदा मुहावरे’, ‘कुइयाँजान’, ‘ज़ीरो रोड’, ‘सात नदियाँ एक समुंदर’, ‘अजनबी जजीरा’, ‘अक्षयवट’ और ‘का़गज़ की नाव’ (उपन्यास); ‘कहानी समग्र’ (तीन खंड), ‘दस प्रतिनिधि कहानियाँ’, ‘शामी का़गज़’, ‘पत्थर गली’, ‘संगसार’, ‘इब्ने मरियम’, ‘सबीना के चालीस चोर’, ‘़खुदा की वापसी’, ‘बुत़खाना’, ‘दूसरा ताजमहल’, ‘इनसानी नस्ल’ (कहानी-संग्रह); ‘अ़फगानिस्तान : बुजकशी का मैदान’ (संपूर्ण अध्ययन दो खंड), ‘मरजीना का देश इराक’, ‘राष्ट्र और मुसलमान’, ‘औरत के लिए औरत’, ‘वो एक कुमारबाज़ थी’ (लेख-संग्रह); ‘औरत की आवाज़’ (साक्षात्कार); ‘जहाँ फौवारे लहू रोते हैं’ (रिपोर्ताज); ‘यादों के गलियारे’ (संस्मरण); ‘शाहनामा फ़िरदौसी’, ‘गुलिस्तान-ए-सादी’, ‘किस्सा जाम का’, ‘काली छोटी मछली’, ‘पोयम ऑफ परोटेस्ट’, ‘बर्निंग पायर’, ‘अदब में बाईं पसली’ (अनुवाद); ‘किताब के बहाने’ और ‘सबसे पुराना दरख़्त’ (आलोचना); बाल-साहित्य में ‘दिल्लू दीनक’ और ‘भूतों का मैकडोनाल्ड’ (उपन्यास); ‘संसार अपने-अपने’, ‘दादाजी की लाठी’ (कहानी); ‘प्लेट़फार्म नं. ग्यारह’, ‘दहलीज़’ तथा ‘मुझे अपना लो’ (रेडियो सीरियल); ‘नौ नगों का हार’ (टी.वी. सीरियल)।