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देश की आजादी में अनेक महान् विभूतियों—क्रांतिकारियों, सत्याग्रहियों एवं स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान रहा है। इसके साथ ही आजादी में अनेक आंदोलनों, घटनाओं, स्थानों एवं वस्तुओं की भी महती भूमिका रही। स्वतंत्र भारत में आजादी में इनके योगदान व महत्ता को दरशाते डाक टिकट जारी किए गए।
जब डाक टिकटों पर नए-नए समसामयिक व्यक्तित्व, घटनाएँ, स्थान, परंपराएँ आदि चित्रित होने लगे तब डाक टिकटों के संग्रह की अवधारणा ही बदल गई। परिणामत: समसामयिक डाक टिकट जीवंत ऐतिहासिक दस्तावेज बनते चले गए, जो अब सिक्कों की भाँति इतिहास-लेखन के नए सशक्त माध्यम (टूल्स ऑफ हिस्ट्री राइटिंग) के रूप में सामने आए हैं। वस्तुत: डाक टिकट इतिहास के झरोखे हैं।
प्रस्तुत पुस्तक द्वारा सुधी पाठकगण डाक टिकटों के माध्यम से सर्वथा नवीन शैली में भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का परिचय पा सकेंगे।
जन्म : 17 मार्च, 1934 को कानपुर (उ.प्र.) में।
शिक्षा : डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर से कला स्नातक (सन् 1955)।
कृतित्व : सन् 1955 से विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्राचीन भारतीय मूर्तिकला व स्थापत्य कला से संबंधित शोधपूर्ण प्रकाशन के साथ ललित-निबंध, रिपोर्ताज, संस्मरण, हास्य-व्यंग्य, रंगमंच-आलोचना आदि पर लेख प्रकाशित; डेढ़ दर्जन बाल साहित्य की पुस्तकें एवं फिलेतली के चार शोध-ग्रंथ प्रकाशित।
पुरस्कार-सम्मान : बाल साहित्य के लिए विभिन्न जनसेवी संस्थाओं एवं चिल्ड्रंस बुक ट्रस्ट, दिल्ली द्वारा सम्मानित एवं पुरस्कृत। ‘हिंदी सेवा सहस्राब्दी सम्मान’, ‘राष्ट्र गौरव सम्मान’ सहित विभिन्न सम्मानों से सम्मानित।
संप्रति : बुंदेलखंड फिलेतली सोसाइटी (झाँसी) के गत पैंतीस वर्षों से सलाहकार।