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विगत वर्षों में हमारे अधिकतर आई.टी. कार्यालय निश्चित स्थान पर 9 से 5 के परंपरागत काम के ढर्रे से काफी आगे निकलकर मोबाइल वर्क प्लेस और सुविधानुसार समय तक पहुँच गए हैं। रिक्रूटमेंट और परफॉर्मेंस रेटिंग स्वचालित हो चुके हैं। हाजिरी मोबाइल या हस्तचालित उपकरणों के जरिए होने लगी है। अगर 10 सालों में हम निश्चित स्थान के कार्यस्थल से चलते-फिरते कार्यस्थल तक का सफर तय कर चुके हैं तो कल्पना कीजिए, अगले पाँच सालों में और क्या हो जाएगा! बड़ी कंपनियाँ नई कंपनियों से कड़ी प्रतिस्पर्धा महसूस करने लगी हैं और नई कंपनियाँ कुछ बड़ी सड़कों या मॉल की खुदरा दुकानों की तरह खुल रही हैं। जागने से सोने तक का सबकुछ बदलने ही वाला है और अगर हम इस बदलाव को स्वीकार नहीं करेंगे तो प्रतिस्पर्धा में टिक पाना हमारे लिए कठिन होगा। अत: ऐसे परिवेश में हमें अपने आपको बदलना होगा। क्यों और कैसे बदलना होगा—यह इस पुस्तक में बताया गया है।
बदलाव के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण और सही सोच विकसित करनेवाली एक व्यावहारिक पुस्तक।
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अनुक्रम
भूमिका—5
1. ऐसा कुछ नहीं है जिसे बदला न जा सके—13
2. छोटी मदद से भी जीवन सँवारा जा सकता है—15
3. जब आप किसी अनजान की सहायता करते हैं तो वह सच्ची ‘मदद’ होती है—17
4. आपके भीतर है समाज को बदलने की ताकत—20
5. सम्मान पाने के लिए समाज की निस्स्वार्थ सेवा करें—22
6. जैसे हैं, वैसे ही रहें, किसी की नकल न करें—24
7. आपकी योग्यता की जरूरत कहाँ है, यह समझिए—26
8. बहुत तेजी से फैलता है अच्छाई का वायरस—28
9. अपने अच्छे काम को आदत बनाकर तो देखें—30
10. जिंदगी में किसी-न-किसी मौके परहमें समझ आ ही जाता है कि कौन सी चीज मायने रखती है—32
11. बिजनेस में तरकी और सम्मान समाज से ही है—35
12. कभी भी खुद को या अपने जीवन को धोखा न दें—37
13. विरासत में इनसानियत छोड़कर जा सकते हैं—40
14. शारीरिक जोखिम उठाकर भी चैरिटी के लिए धन जुटाना संभव—42
15. दूसरों से अलग रहने के लिए लीक से हटकर चलें—44
16. आप भी किसी के सपनों को सच करने में मदद कर सकते हैं—47
17. कुछ जिंदगियों को रोशन करना भी कॉरपोरेट जॉब से कम नहीं है—50
18. आपदा में आप भी मददगार हो सकते हैं, किसी को बचाकर या उसकी सुरक्षा करके—52
19. समाज बदल नहीं सकते, पर कुछ अलग तो कर सकते हैं—54
20. परोपकार करना है तो अलग अंदाज में करें—57
21. मानो या नहीं, लेकिन कभी भगवान् आपको मसीहा बना देते हैं—59
22. अच्छा काम करने से नतीजे भी अच्छे मिलते हैं—61
23. अकेले आदमी की ताकत को भी समझिए—63
24. विकसित समाज में हर कोई जिम्मेदारी उठाता है—65
25. किसी की आखिरी इच्छा पूरी करें और फर्क देखें—68
26. बेहतरी की उम्मीद हमेशा कायम रखिए—70
27. जरूरतमंदों को सिर्फ भोजन मत दीजिए,उन्हें पैरों पर खड़ा कीजिए—73
28. कचरे के पूर्ण प्रबंधन से पर्यावरण सुरक्षित होगा—75
29. कचरे की समस्या बिजनेस का अवसर भी हो सकती है—77
30. हमारे बनाए किले से मजबूत उसकी नींव होती है—80
31. खेती-बाड़ी को है आधुनिक मैनेजमेंट तकनीकों की जरूरत—82
32. जीवन चक्र में खुशी सिर्फ एक हिस्सा है—84
33. विज्ञापनों को कंज्यूमर, लाइफ को आसान और ज्ञानवर्धक बनाना चाहिए—87
34. मोबाइल, इंटरनेट, सोशल नेटवर्किंग की भूमिका होगी अहम्—89
35. आइडिया वही सफल, जो आदत बन जाए—91
36. अच्छे मैनेजमेंट को तुरंत प्रतिक्रिया देकर फैसले लेनेवाला होना चाहिए—93
37. अच्छाई का न कोई रंग होता है, न कोई कीमत—95
38. केवल धन कमाने से ही जीवन कामयाब नहीं होता—97
39. बड़े फैसलों की कुंजी है आपका अवलोकन—99
40. प्रभाव पैदा करने के लिए जरूरी है तार्किक बुद्धि—101
41. गिल्ली-डंडा से भी शिक्षा दी जा सकती है—103
42. सीखना छोड़ देते हैं तो बढ़त भी रुक जाती है—106
43. बचपन में जो आदत पड़ गई, उसे छोड़ नहीं सकते—108
44. सब समझा देती है दिल में दया और करुणा—110
45. जहाँ अरमान ऊँचे होते हैं वहीं उद्यमिता फलती-फूलती है—112
46. गलती पर आधारित न हो नई चीजों की शुरुआत—114
47. आपके व्यतित्व का पता आपकी सोच से चलता है, कपड़ों से नहीं—117
48. मुश्किल वत में जानकारियों के बजाय बुद्धि ज्यादा काम आती है—119
49. जानवरों से भी मिलती है नैतिक मूल्यों की शिक्षा—121
50. रोज के अनुभवों में छिपी है सफलता की चाबी—123
51. या फर्क पड़ता है, अगर आप औसत व्यति हैं?—125
52. जिंदगी जिस रूप में सामने आए, उसे वैसे जिएँ—127
53. एक गलत निर्णय से जीवन का अंत नहीं होता—129
54. दुनिया के इकलौते शिल्पकार शिक्षक हैं—131
55. भगवान् गणेश भी चाहते हैं आप बुद्धिमान हों—134
56. न्याय न मिलने का बहाना गरीबी नहीं हो सकती—137
57. अगर आप हकदार हैं तो दुनिया आपकी मदद करेगी—139
58. जिंदगी में लगातार सीखते रहना चाहिए—141
59. कुछ राज्य शिक्षा कारोबार में ला रहे हैं फूड कल्चर—143
60. बड़ा मकसद चाहिए तो शहरी और ग्रामीण भारत साथ चलें—145
61. सरकारी नीतियों में दूरदृष्टि होनी ही चाहिए—147
62. सभ्य समाज में गलती सुधारने का एक मौका मिलना ही चाहिए—149
63. हेल्दी लिविंग कॉन्सेप्ट से शहरी बन रहे हैं किसान—151
64. गलती तो गलती ही होती है, वह छोटी या बड़ी नहीं होती—153
65. सीखने की उम्र नहीं होती—155
66. कपड़े नहीं, आपका भरोसा बनाता है आत्म-विश्वासी—157
67. बेहतर नतीजे चाहते हैं तो वर्कर्स का ट्रैवलिंग टाइम घटाएँ—159
एन. रघुरामन
मुंबई विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएट और आई.आई.टी. (सोम) मुंबई के पूर्व छात्र श्री एन. रघुरामन मँजे हुए पत्रकार हैं। 30 वर्ष से अधिक के अपने पत्रकारिता के कॅरियर में वे ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘डीएनए’ और ‘दैनिक भास्कर’ जैसे राष्ट्रीय दैनिकों में संपादक के रूप में काम कर चुके हैं। उनकी निपुण लेखनी से शायद ही कोई विषय बचा होगा, अपराध से लेकर राजनीति और व्यापार-विकास से लेकर सफल उद्यमिता तक सभी विषयों पर उन्होंने सफलतापूर्वक लिखा है। ‘दैनिक भास्कर’ के सभी संस्करणों में प्रकाशित होनेवाला उनका दैनिक स्तंभ ‘मैनेजमेंट फंडा’ देश भर में लोकप्रिय है और तीनों भाषाओं—मराठी, गुजराती व हिंदी—में प्रतिदिन करीब तीन करोड़ पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है। इस स्तंभ की सफलता का कारण इसमें असाधारण कार्य करनेवाले साधारण लोगों की कहानियों का हवाला देते हुए जीवन की सादगी का चित्रण किया जाता है।
श्री रघुरामन ओजस्वी, प्रेरक और प्रभावी वक्ता भी हैं; बहुत सी परिचर्चाओं और परिसंवादों के कुशल संचालक हैं। मानसिक शक्ति का पूरा इस्तेमाल करने तथा व्यक्ति को अपनी क्षमता के अधिकतम इस्तेमाल करने के उनके स्फूर्तिदायक तरीके की बहुत सराहना होती है।
इ-मेल : nraghuraman13@gmail.com