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मैंने अपने कहानी-संग्रह में रोजाना के जीवन की लगभग हर समस्या को छूने का प्रयास किया है। यह कहानी-संग्रह साधारण शब्दों में लिखा गया है व इसकी हर घटना की कथावस्तु बहुत ही रोचक है। मैंने बाहर रहने वाले उन बच्चों के बारे में लिखा है, जो पढ़ाई के चक्कर में अपने माँ-बाप को छोड़कर विदेशों में चले जाते हैं। माँ-बाप उनकी हर समय, हर त्योहार पर प्रतीक्षा करते हैं, पर वे काम के कारण नहीं आ पाते। यही तो भाग्य की विडंबना है। मेरे दोनों बच्चे गौरव व पारुल ऑस्ट्रेलिया व अमेरिका में हैं। होली, दीवाली पर नहीं आ पाते। मैं अपने आप को बहुत खुशकिस्मत समझती हूँ कि मेरे पति मुझे हर समय दिलासा देते हैं। वे कहते हैं कि मैं मोह-माया छोड़कर ‘सत्संग’ व ‘कहानी लेखन’ को अपने जीने का सहारा बनाऊँ।
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अनुक्रम
दो शद—7
1. अब पछताए होत या, जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत—11
2. परिवर्तन सदा हितकारी—27
3. यह जीवन है—34
4. पचासवीं सालगिरह—43
5. प्यारी ताईजी—46
6. विनय की पुकार—49
7. जीवन की परिभाषा—52
8. किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता—55
9. भागवद्-कथा—58
10. हम एक हैं—61
11. यादों की बरात—64
12. आसमान से जमीन पर—67
13. गीता का भाग्य—71
14. जीवन के पथ पर—75
15. आशा और निराशा—78
बिंदु सक्सेना ‘देहलवी’
मुझे आरंभ से ही किस्से-कहानियाँ पढ़ने का बहुत शौक था। बचपन में मैं अपनी माताजी से रोज एक कहानी सुनती थी। बडे़ होकर भी मेरी यह रुचि समाप्त नहीं हुई। यद्यपि मैंने गणित में एम.ए. किया, पर किस्से-कहानियों में मेरी दिलचस्पी सदा रही। अपने स्कूल व कॉलेज के दिनों में भी मैं पत्रिकाओं में लिखती रही। मैं पाँच साल ‘हिंदी सेक्शन’ की संपादक रही। प्रारंभ से अंत तक विभिन्न प्रतियोगिताओं में सदा मुझे प्रथम स्थान मिलता रहा। इसके अतिरिक्त मुझे पढ़ाई में भी ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया नेशनल स्कॉलरशिप’ प्राप्त हुई, जिसके कारण मुझे कभी भी कॉलेज की फीस नहीं देनी पड़ी। यह मेरा पहला कहानी-संग्रह है, जिसे मैंने काफी परिश्रम से लिखा है। आशा करती हूँ, आप सबके आशीर्वाद से यह अवश्य सफल होगा।