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विज्ञान और तकनीक के बल पर आज का इनसान भले ही प्रकृति पर अखंड साम्राज्य का सपना सजा रहा है, लेकिन गरीब व मजबूर बच्चों का दुर्भाग्य कहें कि उनका शोषण होता ही रहता है। माचिस, अगरबत्ती, साबुन, अभ्रक, चमड़ा उद्योग, ईंटों के भट्ठे पर, चाय बागानों में, घरों में—सभी जगह पर बाल श्रमिक होते हैं। बच्चे बड़ों से अधिक काम करते हैं, लेकिन उन्हें पैसे कम मिलते हैं। यही नहीं, वे बोझा ढोकर, फेरी लगाकर, कचरों के ढेर से लोहा, टीन, प्लास्टिक के टुकड़े बीन-बेचकर खुद को और माँ-बाप, भाई-बहनों को पालते हैं, बीमार परिवार की दवा-दारू करते हैं।
कभी ये गरीब बच्चे बड़े शहरों के दलालों और गुंडों के चंगुल में फँसकर, भीख माँगकर, जेब काटकर इन बदमाशों की झोली भरने को मजबूर जीवन भर अँधेरी गलियों में भटकते हैं। गरीब माता-पिता द्वारा बेचे हुए बच्चे अरब देशों के शेखों के मनोरंजन हेतु ऊँटों की पीठ से गिरकर मृत्यु को प्राप्त होते हैं। और तो और, बाल वेश्यावृत्ति तक करके अपने घरों का चूल्हा जलानेवाली अभागी बच्चियाँ तक इस अमानवीय शोषण की शिकार होती हैं।
बाल-शोषण के निर्मम संसार की बखिया उधेड़ता एक क्रांतिकारी उपन्यास।"