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शिक्षकों और बालकों पर पुस्तकें चाहे कम ही सही, परंतु लिखी गई हैं। माता-पिता या अभिभावक कैसे हों? इस विषय पर पहली बार ही कोई पुस्तक हिंदी साहित्य में प्रकाशित हुई है। मुझे पहल करने का गौरव प्राप्त हो रहा है। इस पुस्तक की शैली भी अनोखी है। अभिभावकों का प्रशिक्षण कार्यक्रम हो रहा है। हर विषय के विशेषज्ञ उसमें अपने व्याख्यान दे रहे हैं। फिर शंका-समाधान के लिए प्रश्न एवं उत्तर की व्यवस्था से पुस्तक और अधिक सरल तथा सरस बन गई है।
माता-पिता अपने बच्चों की तथा परिवार की भलाई के लिए इस पुस्तक को अवश्य पढें़। इसमें ऐसा बहुत कुछ मिलेगा, जो माता-पिता बन जाने के बाद भी हमें पता नहीं है। हमें अपने दायित्व का बोध नहीं है। हम या तो बच्चों को मारते-डाँटते हैं या शिक्षकों को दोष देते रहते हैं। मेरा दावा है कि इस पुस्तक को पढ़ने के बाद हम सच्चाई को समझेंगे, अपने कर्तव्य को जानेंगे, समझेंगे तथा निभाएँगे।
जन्म : 26 जनवरी, 1940; ग्राम नवादा, डा. गुलावठी, जिला बुलंदशहर।
शिक्षा : एम.ए. (दिल्ली), प्रभाकर, साहित्य रत्न, साहित्याचार्य, शिक्षा शास्त्री।
कृतित्व : ‘गीत रसीले’, ‘गीत सुरीले’, ‘चहकीं चिडि़याँ’ (कविता); ‘अच्छे बच्चे सीधे सच्चे’, ‘व्यवहार में निखार’, ‘चरित्र निर्माण’, ‘सदाचार सोपान’, ‘पढ़ै सो ज्ञानी होय’ (नैतिक शिक्षा); ‘व्याकरण रचना’ (चार भाग), ‘ऑस्कर व्याकरण भारती’ (आठ भाग), ‘भाषा माधुरी प्राथमिक’ (छह भाग), ‘बच्चे कैसे हों?’, ‘शिक्षक कैसे हों?’, ‘अभिभावक कैसे हों?’ (शिक्षण साहित्य); ‘पढ़ैं नर-नार, मिटे अँधियार’ (गद्य); ‘श्रीराम नाम महिमा’, ‘मिलन’ (खंड काव्य); ‘सरस्वती वंदना शतक’, ‘हमारे विद्यालय उत्सव’, ‘श्रेष्ठ विद्यालय गीत’, ‘चुने हुए विद्यालय गीत’ (संपादित); ‘गीतमाला’, ‘आओ, हम पढ़ें-लिखें’, ‘गुंजन’, ‘उद्गम’, ‘तीन सौ गीत’, ‘कविता बोलती है’ (गीत संकलन)।सम्मान : 1996 में हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा सम्मानित; 1997 में दिल्ली राज्य सरकार द्वारा सम्मानित।
संप्रति : ‘सेवा समर्पण’ मासिक में लेखन तथा परामर्शदाता, राष्ट्रवादी साहित्यकार संघ (दि.प्र.) के अध्यक्ष; संपादक ‘सविता ज्योति’।