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Abhimaan Ko Karein Bye-Bye   

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Author Sirshree
Features
  • ISBN : 9789351864028
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1
  • ...more

More Information

  • Sirshree
  • 9789351864028
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1
  • 2015
  • 192
  • Hard Cover

Description

मैं कट सकता हूँ, मगर झुक नहीं सकता,’  यदि  कोई  इस विचारधारा में बह रहा है तो समझ लें, उसका पतन निश्चित है। ऐसे इनसान का अज्ञान चरम सीमा पर है। छोटे और अस्थायी लाभ में अटककर, वह सबसे मुख्य (पृथ्वी) लक्ष्य से दूर जा रहा है। ऐसी गलती किसी से न हो, इसलिए ‘अभिमान को अभी जान’ मंत्र द्वारा अहंकार को जड़ से काट दें।

वैसे देखा जाए तो बोलने, पढ़ने या समझने में अभिमान, स्वाभिमान और स्वभान एक से शब्द लगते हैं, लेकिन तीनों के मायने अलग हैं। अभिमान शब्द नकारात्मक है, जबकि स्वाभिमान शब्द सकारात्मक है, जो स्वानुभव, स्वभान की ओर ले जाने में मदद करता है।

अभिमान से निजात पाकर ही इनसान नम्रता की शक्ति प्राप्त करता है। नम्रता तब तक एक बड़ी शक्ति है, जब वह आत्मनियंत्रण और समझ से आई हो। नम्रता तब कमजोरी बनती है, जब वह अज्ञान और आसक्ति द्वारा लाई गई हो। नम्रता से दोस्ती करवाकर, अभिमान से मुक्ति पाने में यह पुस्तक आपकी मदद करेगी।

सबकुछ जान लेने के बाद तो आइए, अभिमान को करें बाय-बाय!

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विषय सूची
पुरोवाक् — अभिमान के सींग — Pgs. 13
शक्ति या कमजोरी
खंड-1—अभिमान : मान नहीं, जान
अध्याय-1 — अनमना मन — Pgs. 21
खोज का दुश्मन
अध्याय-2 — अंधों में काना कौन — Pgs. 28
अभिमान को अभी जानें
अध्याय-3 — अभी मानकर नहीं, जानकर चलें — Pgs. 33
असली व नकली अहंकार में फर्क 
अध्याय-4 — अहंकार की पृष्ठभूमि पहचानें — Pgs. 40
फॉल्स सीलिंग में न अटकें
अध्याय-5 — राजा का रूपांतरण — Pgs. 46
अंदर-बाहर से स्थानांतरण
अध्याय-6 — इनसानी सिर का मूल्य कितना — Pgs. 53
धर्म मार्ग ही कल्याण मार्ग
अध्याय-7 — मूल्यहीन अमूल्य कैसे बने — Pgs. 59
ग्रेट और ग्रेटेस्ट से मुक्ति का मार्ग
खंड-2—अहंकार की छाया
अध्याय-8 — कहानी की हानि — Pgs. 65
जीवन-गीत-गीता
अध्याय-9 — अहंकार आपको न मनवाए — Pgs. 70
अलग और सही दिखने की चाहत मिटे
अध्याय-10 — असली मायावी कौन — Pgs. 74
पवित्रता की शक्ति
अध्याय-11 — शांतिवादी बनें — Pgs. 80
आतंकवादी से मुक्ति पाएँ
अध्याय-12 — अहंकार निमित्त बनकर रहे — Pgs. 87
‘मैं शरीर हूँ’ की साइकिल पहचानें
खंड-3—अहंकार दर्शन
अध्याय-13 — अहंकार—जन्म और मृत्यु स्थान — Pgs. 97
इस्तेमाल और अंत
अध्याय-14 — मिटे ‘मैं’ की मक्खी — Pgs. 102
सर्वव्यापी मैं
अध्याय-15 — असली अहंकार—मैं दूसरों से अलग — Pgs. 108
चोंच के प्रकार
अध्याय-16 — अहंकार है सबसे बड़ा बलवान् दुश्मन — Pgs. 116
अहंकार और क्रोध का रिश्ता
खंड-4—अभिमान से मुक्ति के 13 कदम
अध्याय-17 — नम्रता की शक्ति — Pgs. 123
नफरत से मुक्ति 
अध्याय-18 — छवि से मुक्ति — Pgs. 131
इमेज की इमेज न बने
अध्याय-19 — शरीर, मन व बुद्धि का प्रशिक्षण — Pgs. 138
हृदय रूपी माँ की सुनें 
अध्याय-20 — बेबंध साक्षी बनें — Pgs. 143
अभिमान से तेजस्थान 
अध्याय-21 — विचार का पॉकेट जाँचें — Pgs. 148
निर्विचार ध्यान 
अध्याय-22 — तीसरा तरीका — Pgs. 151
न करना भी अहंकार के हाथ में नहीं 
अध्याय-23 — प्रार्थना तेजस्थान — Pgs. 154
आत्मावलोकन
अध्याय-24 — सही सवाल पूछना सीखें — Pgs. 158
तथाकथित दुःख मिटे 
अध्याय-25 — फिलहाल का सूत्र — Pgs. 164
दुःख : चेतना का पेट्रोल भरने का सूचक
अध्याय-26 — तुम्हें जो लगे अच्छा, वही मेरी इच्छा — Pgs. 168
होश का हथौड़ा
अध्याय-27 — अहंकार और सेवा — Pgs. 174
अहंकार का इलाज 
अध्याय-28 — अहंकार का डॉक्टर — Pgs. 179
गुरु 
अध्याय-29 — भक्ति में तुम, तो हो अहंकार गुम — Pgs. 184
समर्पण की शक्ति 
परिशिष्ट — Pgs. 188

 

The Author

Sirshree

तेजगुरु सरश्री की आध्यात्मिक खोज उनके बचपन से प्रारंभ हो गई थी। अपने आध्यात्मिक अनुसंधान में लीन होकर उन्होंने अनेक ध्यान-पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें विविध वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर अग्रसर किया।
सत्य की खोज में अधिक-से-अधिक समय व्यतीत करने की प्यास ने उन्हें अपना तत्कालीन अध्यापन कार्य त्याग देने के लिए प्रेरित किया। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपना अन्वेषण जारी रखा, जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्‍त हुआ। आत्म-साक्षात्कार के बाद उन्हें यह अनुभव हुआ कि सत्य के अनेक मार्गों की लुप्‍त कड़ी है—समझ (Understanding)।
सरश्री कहते हैं कि सत्य के सभी मार्गों का प्रारंभ अलग-अलग प्रकार से होता है, किंतु सबका अंत इसी ‘समझ’ से होता है। ‘समझ’ ही सबकुछ है और यह ‘समझ’ अपने आप में संपूर्ण है। अध्यात्म के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्‍त है।

सरश्री ने दो हजार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सत्तर से अधिक पुस्तकों की रचना की है। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनूदित हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं।

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