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आधुनिक युग में विज्ञान एवं तकनीकी में अभूतपूर्व विकास तथा नई-नई सुविधाओं का सृजन होने के कारण सभी की आकांक्षाएँ आकाश को छूने लगी हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन को सर्वोत्तम शैली में बिताना चाहता है। वैसे तो ‘सर्वोत्तम शैली’ की परिभाषा प्रत्येक व्यक्ति के लिए भिन्न होगी, परंतु इसके सामान्य आधार में ऐसे बिंदु अवश्य सम्मिलित होंगे, जिनसे व्यक्ति विशेष स्वस्थ हो, प्रसन्न मन का हो, समृद्धि प्राप्त करे एवं समाज का एक महत्त्वपूर्ण अंग बनकर अपना जीवन बिताए।
प्रस्तुत पुस्तक में जीवन जीने के लिए आवश्यक बिदुंओं का बड़ा सरल विश्लेषण किया गया है। इसमें संकलित नौ सूत्र आपकी जिंदगी को बेहतर तरीके से जीने में आपकी मदद करेंगे और आप तनावरहित, संतोषपूर्ण, समृद्ध, सुखद और सार्थक जीवन जी पाएँगे।
आदर्श जीवन जीने की राह दिखाती एक अत्यंत रोचक पठनीय पुस्तक।
20 जुलाई, 1949 को जनमे विनोद मल्होत्रा ने शिमला, चंड़ीगढ़ और दिल्ली में शिक्षा प्राप्त की तथा वर्ष 1971 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में पदार्पण किया। संस्कृत भाषा में आपकी गहन रुचि है। बचपन से ही भगवद्गीता एवं संगीत में आपका रुझान रहा है। गीता का गहराई से अध्ययन करते हुए आपने हमेशा इसके ज्ञान को बाँटने, संचित करने व इसके संदेश को फैलाने का प्रयास किया। कुछ ही लोगों ने संगीत की शक्ल में गीता के श्लोकों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। आपने इस चुनौती को स्वीकार किया और सुर एवं ताल के साथ गीता के अद्वितीय संदेश को प्रस्तुत करने की ठानी और दस विभिन्न रागों में इसका संगीत तैयार किया।
विज्ञान एवं अध्यात्म का अनुपम संगम करते हुए श्री मल्होत्रा ने ‘वैश्विक ऊर्जा’, ‘जीवन शैली का प्रबंधन’, ‘मृत्यु—एक शाश्वत सत्य’ विषयों पर पुस्तकें एवं लेख भी लिखे हैं। आपकी सभी कृतियाँ भारतीय संस्कृति एवं आध्यात्मिक संपदा को सजीव करती हैं।