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"कथालेखक क्या करता है ? इस सवाल का वस्तुपरक जवाब यह है कि वह समय और समाज का इतिवृत्त लिखता है। लेकिन कथा में समय और समाज के अंकन की कोई तय सीमा नहीं होती। वह समकालीन भी रह सकती है और कालातीत भी। समय के त्रिपार्श्व पर टिकी कथादृष्टि बेशक व्यापक और बहुमुखी होती है। इस प्रसंग में खास बात यह है कथानक का यथार्थ टकसाल में ढले सिक्के की तरह नहीं होता, वह वक्त के लगातार सरकते पहिए के साथ चलता है। इस संग्रह की चौदह कहानियों में चित्रित समय निस्संदेह समकालीन है।
लेकिन उनमें सदी के गतिशील चेहरे की कई-कई सलवटें भी शामिल हैं। 'अधिवास की फाँस' की परिधि में समसामयिक जीवन का विस्तार है तो आंचलिक उलझनों से बने तने अनगिनत रेशे भी हैं। अंतर्वस्तु के लिहाज से इस संग्रह की सात कहानियों में आदिवासी कथाभूमि की परिक्रमा देखी जा सकती है। तो भी ये कहानियाँ सिर्फ कंटेंट के लिहाज से ही खास नहीं हैं, बल्कि अपने भाषिक दृश्यांकन की दृष्टि से भी रोचक हैं। साहित्य की विविध विधाओं में लगभग ढाई दर्जन प्रकाशित पुस्तकों की मार्फत विद्याभूषण के सृजन और विचार की जो विविधता चर्चा में रहती आई है, उसे यहाँ भी परखा जा सकता है।"