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"भारतीय जनता, साहित्य में अपने मूल से जुड़ी हुई है। वह उस साहित्य को स्वीकार करती है जो धर्म, दर्शन, अध्यात्म, नैतिकता, इतिहास, पुराण, सामाजिक उत्सव, पर्व-त्योहार, ज्ञान- विज्ञान आदि से जुड़ा है। वे भारतीय लोग जो ईसा पूर्व से लेकर उन्नीसवीं शताब्दी तक भारत के बाहर जाकर बस गए, ऐसा ही साहित्य अपने साथ सँजोए रहे। वहाँ उन्होंने अपनी जातीयता, धर्म, कला और संस्कृति को सुरक्षित रखा। आज भी मॉरिशस, फीजी, सूरीनाम के भारतीय मूल के निवासियों का जीवन अपनी मूल भाषा, रामायण, महाभारत, गीता और पुराण ग्रंथों के सन्मार्ग से प्रेरित होता है। मनु शर्मा जैसे कथाकार इसी सोच के रहे। इसलिए इतिहास, पुराण, महाभारत के चरित्र उनकी लेखनी द्वारा विश्लेषण के विषय बने।
महाभारत के सभी महत्वपूर्ण पात्रों के माध्यम से इतिहास और संस्कृति की व्याख्या करना एक कुरुक्षेत्र में सहभागी होना है। भारतीयता के अंतर्गत आधुनिक होने का अर्थ फैशनपरस्ती या नंगापन, या शैम्पन और वाइन की बोतल खोलना नहीं। वह एक विचार है, एक सातत्य बोध। परंपरा का नैरंतर्य। नैरंतर्य अपने-आप सँवरता रहता है, तराशता रहता है, खरोंचता है, माँजता है, परिवर्धित करता है और परिमार्जित भी। यही शाश्वत भारतीयता है, जो कभी अनाधुनिक होती ही नहीं। मनु शर्मा इसी अनाधुनिक न होने वाली भारतीयता के कथाकार हैं। यह पुस्तक इसी विचार बोध के साथ मनु शर्मा की औपन्यासिक कृतियों का विश्लेषण करती है।"