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देश का अधिकांश गुणी समाज आज भी गाँवों में ही निवास करता है। कभी-कभार, बुजुर्गों की जुबानी सामाजिक ज्ञान की बहुत सी बातें सुनने को मिल जाती हैं, जो हमारी किताबों का हिस्सा नहीं होतीं। सच में, भारतीय गाँवों की कल्पना के पीछे पुरखों का गजब चिंतन रहा है। जहाँ आहार और गौरव की सुरक्षा होय विज्ञान, कला, अध्यात्म और सामाजिक अर्थशास्त्र के चारों मजबूत स्तंभ हों। छोटे-छोटे औजारों से बड़े-बड़े काम करने संभव हों। घर का वास्तु-विज्ञान आरोग्य के लिए श्रेष्ठ हो, प्रकृति से घिरे हुए गाँव में हरे-भरे खेत-खलियान, निर्मल जल लेकर बहती हुई नदियाँ, तालाब, कुएँ, हमेशा गुनगुनाती और उत्सव मनातीं, मेहनती औरतों की मुसकान हो। युवाओं के चेहरे पर संतोष का भाव हो। गाय के साथ भागते-दौड़ते बच्चों की खिलखिलाहट हो। बुजुर्गों के होंठों पर भी मुस्कान हो। ऐसे गाँवों की कहानी है इस पुस्तक में।