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मेजर मीड : महाराज, सुनने में आया है कि तात्या साहब ने आपके यहाँ संरक्षण ग्रहण किया है?...आपको ज्ञात होगा कि तात्या राजद्रोही है और उसे पकड़ने के लिए हमारी सेनाएँ एक साल से उसके पीछे लगी हुई हैं।
मानसिंह : ज्ञात है, पर जब तक वह मेरे आतिथ्य में हैं तब तक उन्हें कोई नहीं पकड़ सकता।
मेजर मीड : अच्छी तरह सोच लीजिए, मानसिंह जी! राजद्रोही को रखना सरकार से बैर मोल लेना है।...कोरी भावुकता में न बहिए, मानसिंह जी! मैं आपके हित में कह रहा हूँ—तात्या को मेरे हवाले कर दीजिए। इससे सरकार आपको बहुत सा पारितोषिक देगी। राज-कर से आप मुक्त कर दिए जाएँगे और आपका राज्य भी एक स्वतंत्र व स्थायी राज्य बना दिया जाएगा।
मानसिंह : मैं इन प्रलोभनों से अपने कर्तव्य को अधिक महत्त्व देता हूँ, मीड साहब! मैं तात्या साहब को कभी आपके हवाले नहीं कर सकता।
मीड : लेकिन इसका परिणाम सोचा है?
मानसिंह : हाँ, इस नश्वर शरीर से मुक्ति; और यही क्षत्रिय के लिए वरदान है।
—इसी संकलन से
समय के सागर में अटल-अचल भारत-गौरव के विराट् शैल-शिखर, जिन्हें देखकर आज भी हमारा मस्तक गर्व से आकाश तक ऊँचा उठ जाता है और हमारी महान् परम्परा तथा अमर आदर्शों के ग्रह-नक्षत्र हमारा आह्वान करते हैं, उत्कर्ष की ऊँचाइयों की ओर।
भारतीय संस्कृति की गौरव-गंगधार में आए गतिरोध को सदैव निरस्त करनेवाले अपने स्वर्णिम इतिहास के रत्नांकित अध्याय प्रस्तुत हैं, बहुरंग-रसमय नाटकीय संदर्शन में—
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के एकांकी
जन्म : सन् 1944, संभल ( उप्र.) ।
डॉ. अग्रवाल की पहली पुस्तक सन् 1964 में प्रकाशित हुई । तब से अनवरत साहित्य- साधना में रत आपके द्वारा लिखित एवं संपादित एक सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । आपने साहित्य की लगभग प्रत्येक विधा में लेखन-कार्य किया है । हिंदी गजल में आपकी सूक्ष्म और धारदार सोच को गंभीरता के साथ स्वीकार किया गया है । कहानी, एकांकी, व्यंग्य, ललित निबंध, कोश और बाल साहित्य के लेखन में संलग्न डॉ. अग्रवाल वर्तमान में वर्धमान स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिजनौर में हिंदी विभाग में रीडर एवं अध्यक्ष हैं । हिंदी शोध तथा संदर्भ साहित्य की दृष्टि से प्रकाशित उनके विशिष्ट ग्रंथों-' शोध संदर्भ ' ' सूर साहित्य संदर्भ ', ' हिंदी साहित्यकार संदर्भ कोश '-को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है ।
पुरस्कार-सम्मान : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ द्वारा व्यंग्य कृति ' बाबू झोलानाथ ' (1998) तथा ' राजनीति में गिरगिटवाद ' (2002) पुरस्कृत, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली द्वारा ' मानवाधिकार : दशा और दिशा ' ( 1999) पर प्रथम पुरस्कार, ' आओ अतीत में चलें ' पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ का ' सूर पुरस्कार ' एवं डॉ. रतनलाल शर्मा स्मृति ट्रस्ट द्वारा प्रथम पुरस्कार । अखिल भारतीय टेपा सम्मेलन, उज्जैन द्वारा सहस्राब्दी सम्मान ( 2000); अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानोपाधियाँ प्रदत्त ।