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Author Prof. Bhagwati Prakash Sharma
Features
  • ISBN : 9789352663651
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
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  • Kindle Store

More Information

  • Prof. Bhagwati Prakash Sharma
  • 9789352663651
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2017
  • 200
  • Hard Cover
  • 350 Grams

Description

हमारे प्राचीन शास्त्रों में वर्णित हमारी ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विरासत और उनमें उपलब्ध ज्ञान-विज्ञान के विविध विवरणों की प्रामाणिकता व वैज्ञानिकता की आज के पुरातात्त्विक व वैज्ञानिक अन्वेषणों द्वारा उत्तरोत्तर पुष्टि की जा रही है। इन सभी अन्वेषणों का क्रमबद्ध संकलन, आज की अत्यंत महती आवश्यकता है। विगत 50 वर्षों में कोडूमनाल (तमिलनाडु) सहित 100 से अधिक स्थानों पर हुए पुरातात्त्विक उत्खनन प्रागैतिहासिक काल में रही, भारतीय संस्कृति की अत्यंत उन्नत अवस्था व अति उन्नत प्रौद्योगिकी व ज्ञान-विज्ञान को परिलक्षित करते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में हमारी प्राचीन समृद्धि, ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में हमारी उन्नत विरासत, स्वाधीनता के उपरांत हुई हमारी प्रमुख त्रुटियों और अब देश की पुनः द्रुत आर्थिक प्रगति व समावेशी विकास के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु उपयुक्त रीति-नीति की रूपरेखा के प्रमुख बिंदुओं का संक्षिप्त विवेचन करने का प्रयास किया गया है। आज हम उच्च आर्थिक राष्ट्रनिष्ठा की अभिव्यक्ति के रूप में आर्थिक राष्ट्रवाद, तकनीकी राष्ट्रवाद, उन्नत प्रौद्योगिकी विकास हेतु उद्योग सहायता संघों के सूत्रपात, कृषि, सहकारिता, सामाजिक समरसता, स्वदेशी व पर्यावरण संरक्षण आदि के क्षेत्र में एकात्म मानव- दर्शन का अनुसरण कर धारणक्षम एवं समावेशी विकास के पथ पर द्रुत गति से अग्रसर हो सकते हैं। इस पुस्तक में इन्हीं सभी विषयों की संक्षिप्त समीक्षा की गई है। 
इन विषयों पर समाज में विमर्श और देश अपने प्राचीन परम वैभव को प्राप्त कर पुनः विश्व मंगल का प्रणेता बने, तो इस पुस्तक का लेखन-प्रकाशन सफल होगा।

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अनुक्रम

भूमिका — Pgs. 7

अध्याय-1

भारत एक सनातन राष्ट्र

1.1 हिंदू राष्ट्र्र की अवधारणा — Pgs. 14

हिंदू राष्ट्र व इसका विस्तार — Pgs. 14

बौद्ध मत में — Pgs. 23

धर्म का मूल ऋत — Pgs. 23

1.2 अतीत में संपूर्ण भूमंडल एक हिंदू राष्ट्र — Pgs. 25

1.3 राष्ट्र की संकल्पना अतिप्राचीन — Pgs. 28

सर्व पंथ समादर : सब पंथों का समान आदर — Pgs. 32

हिंदुत्व में धर्म की पंथ निरपेक्षता व मानवोचित कर्तव्य-परायणता — Pgs. 35

महाभारत के अंतर्गत धर्म की पंथ निरपेक्ष परिभाषाएँ — Pgs. 37

धर्म की उपासना मतों से भिन्नता — Pgs. 38

अध्याय-2

हिंदुत्व की पहचान : समरसतापूर्ण समाज

जातियाँ शिल्प श्रेणियों से बनी हैं — Pgs. 47

हिंदू संस्कृति उदार व खुलेपनवाली है — Pgs. 59

अस्पृश्यता बाहरी आक्रमणों से आरोपित विकृति — Pgs. 63

संपूर्ण समरसतापूर्ण या समरस समाज — Pgs. हमारी दीर्घ परंपरा व

 आज की अनिवार्य आवश्यकता — Pgs. 65

अध्याय-3

हमारा प्राचीन गौरव

3.1 हिंदू काल गणना की सार्वभौमिकता व खगोल शुद्धता — Pgs. 74

3.2 हिंदू जीवन की प्रागैतिहासिक प्राचीनता — Pgs. 77

3.3 प्राचीन शास्त्रों में करोड़ों वर्षों के भौगोलिक परिवर्तनों का संकेत — Pgs. 84

3.4 वेदों व अन्य हिंदू धर्मग्रंथों में उन्नत ज्ञान-विज्ञान — Pgs. 86

3.5 अनगिनत पुरातात्विक प्रमाण — Pgs. 94

(i) 2500 वर्ष प्राचीन औद्योगिक नगर — Pgs. 95

(ii) सोलहवीं सदी तक विश्व का सबसे संपन्न देश — Pgs. 95

3.6 स्वाधीनता के समय की समृद्धि — Pgs. 96

3.7 समावेशी विकास की भारतीय अवधारणा व हमारी उज्ज्वल आर्थिक परंपरा — Pgs. 97

अध्याय-4

अतीत की ऐतिहासिक गलतियाँ

4.1 मध्ययुगीन चूकें एकता का अभाव — Pgs. 99

4.2 स्वाधीनता के उपरांत की हमारी चूकें — Pgs. 100

(i) समाजवादी दुराग्रह — Pgs. 100

(ii) उदारीकरण के नाम पर आयात व विदेशी पूँजी को प्रोत्साहन के दुष्परिणाम — Pgs. 103

(iii) विश्व व्यापार संगठन के निर्माण में नरसिंह राव सरकार का समर्पण  — Pgs. 112

4.3 चीन, तिबत व कश्मीर समस्या — Pgs. 120

अध्याय-5

हमारा उज्ज्वल भविष्य और उसका मार्ग चित्र

हमारा स्वरूप व सामर्थ्य — Pgs. 134

भविष्य की रीति-नीति — Pgs. 137

I. समाज के प्रति समरसतापूर्ण एकात्म दृष्टि व पारिवारिक सौहार्द — Pgs. 137

(अ) समाज में समरसता की प्रतिष्ठा — Pgs. 138

(ब) पारिवारिक सौहार्द व सामाजिक संस्कार — Pgs. 139

II. परिमित उपभोग व पर्यावरण के प्रति एकात्मकतामूलक चिंतन — Pgs. 140

अनियंत्रित उपभोग पर अंकुश — Pgs. 143

आर्थिक विषमता का निवारण — Pgs. 144

धारणक्षम उपभोग या संधारणीय उपभोग — Pgs. 145

III. समन्वित कृषि विकास हेतु समुचित निवेश व अनुसंधान संवर्धन — Pgs. 146

कृषि विकास हेतु आवश्यक कदम — Pgs. 150

IV. स्वदेशी व स्वावलंबन का मार्ग  — Pgs. 151

1. जापान में आर्थिक राष्ट्रनिष्ठा — Pgs. 152

2. आर्थिक राष्ट्रवाद या शासकीय आर्थिक राष्ट्रनिष्ठा के अन्य देशों के कुछ उदाहरण — Pgs. 153

V. स्वदेशी उद्यम, उत्पाद व ब्रांड विकास अर्थात् ‘मेड बाई भारत’ की रीति-नीति — Pgs. 161

1. विदेशों में युतिपरक अधिग्रहण

1.1 भारतीय उदाहरण — Pgs. 163

1.1.1 अधिग्रहणों से टाटा मोटर्स की विश्व में 34वें से 5वें शीर्ष स्थान पर आने की विकास यात्रा — Pgs. 163

1.1.2 ‘टाटा टी’ का टेटली का अधिग्रहण कर विश्व में 30वें स्थान से उठकर, विश्व की दूसरी सबसे बड़ी चाय कंपनी बनना — Pgs. 166

1.1.3 महिंद्रा का वायुयान उत्पादन के क्षेत्र में प्रवेश, अधिग्रहण मार्ग से विकास का उाम उदाहरण — Pgs. 166

1.1.4 भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशों में अधिग्रहण के कुछ अन्य उदाहरण — Pgs. 167

1.2 छोटी सी चीनी कंपनी लीनोवो का अधिग्रहण के मार्ग से विश्व की शीर्ष पी.सी. कंप्यूटर कंपनी बनना — Pgs. 168

1.3 भारत के लिए अधिग्रहणों द्वारा आगे बढ़ने का मार्ग चित्र — Pgs. 169

2. तकनीकी राष्ट्रवाद से वैश्विक तकनीकी नेतृत्व — Pgs. 170

2.1 चीन द्वारा घेरलू प्रौद्योगिकी के पक्ष में तकनीकी मानकों का निरूपण — Pgs. 170

2.2 चीन के विदेशी प्रौद्योगिकी को रूपांतरित कर अपने स्वदेशी विकल्पों से आर्थिक उत्कर्ष — Pgs. 173

2.2.1 डी.वी.डी. के स्थान पर ई.वी.डी. व ई.वी.डी. प्लेयर्स — Pgs. 173

2.2.2 बेतार-संचार के लिए ‘‘वापी’’ का विकास — Pgs. 174

2.2.3 विदेशी एकाधिकार के उत्पादों व प्रौद्योगिकी के घरेलू विकल्पों का विकास — Pgs. 175

2.3 वैकल्पिक प्रौद्योगिकी विकास में भारत की प्रबल सामर्थ्य — Pgs. 176

2.4.1 सुपर कंप्यूटर के विकल्प के रूप में पेरेलल प्रोसेसिंग — Pgs. 176

2.4.2 अत्यंत मितव्ययी लागत के साथ भारत एक अंतरिक्ष महाशति — Pgs. 178

2.4.3 लचीली व मानवोचित पेटेंट व्यवस्था से भारत के विश्व की फार्मेसी बनने की सफलता — Pgs. 181

3. उद्योग सहायता संघों, प्रौद्योगिकी विकास सहकारी संघ या समझौते और सहकारी विकास अधिनियम — Pgs. 183

4. भारतीय अर्थात् ‘मेड बाई इंडिया’ उत्पादों व ब्रांडों के प्रवर्तन का हमारा सामर्थ्य — Pgs. 188

4.1 निरमा — Pgs. 188

4.2 अमूल — Pgs. 189

4.3 बायोकॉन व किरण मजूमदार — Pgs. 190

4.4 स्टार्टअप व सूक्ष्म उद्यमों के माध्यम से देश के उद्यमी रचेंगे नया इतिहास — Pgs. 191

(i) रेज पावर एसपर्ट का उदाहरण — Pgs. 191

(ii) सुजलॉन की सफलता — Pgs. 191

(iii) विकेंद्रित नियोजन — Pgs. 192

(iv) चीन के विरुद्ध प्रभावी रीति-नीति — Pgs. 192

(v) एकात्म मानव दर्शन का अनुसरण व प्रसार — Pgs. 194

The Author

Prof. Bhagwati Prakash Sharma

प्रो. भगवती प्रकाश शर्मा सन् 1978 से वाणिज्य एवं प्रबंध संकायों में स्नातकोत्तर स्तर पर अध्यापन कर रहे हैं। वाणिज्य एवं प्रबंध के क्षेत्र में स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर के छात्रों के लिए 11 पुस्तकें लिखी हैं। इनके मार्गदर्शन में 15 छात्रों ने पीएच.डी. स्तर का शोध एवं 80 से अधिक अन्य शोध परियोजनाओं का निर्देशन किया है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में 230 से अधिक लेख एवं शोधपत्र प्रकाशित हुए हैं।
आर्थिक एवं वैश्विक व्यापार संबंधी विषयों में रुचि होने से प्रो. शर्मा ने स्वदेशी जागरण मंच की ओर से, विश्व व्यापार संगठन (ङ्ख.ञ्ज.हृ.) के पाँचवें, छठे एवं दसवें मंत्रिस्तरीय द्विवार्षिक सम्मेलन में क्रमशः 2003 में केन्कुन (मेक्सिको), 2005 में हांगकांग व 2015 में नैरोबी (केन्या) में भाग लिया।
प्रबंध के क्षेत्र में प्रो. शर्मा अंतर्व्यक्ति व्यवहार की प्रभावशीलता, समय प्रबंधन, संगठन विकास, शून्य-आधारित बजट परिवर्तनों के प्रबंध, नेतृत्व विकास आदि विषयों के प्रशिक्षक भी हैं।
इन्होंने आर्थिक वैश्वीकरण, विश्व व्यापार संगठन, स्वदेशी, विनिवेश आदि विषयों पर 30 लघु पुस्तिकाएँ भी लिखी हैं। वर्तमान में प्रो. शर्मा स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक हैं।
इ-मेल : bpsharma131@yahoo.co.in

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