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"कहानियाँ मानव मन की स्वाभाविक एवं सहज अभिव्यक्ति हैं; इसी वृत्त में उसकी वृत्तियाँ घूमती हैं। इन्हीं वीथिकाओं से भाव, विषय, संवेग, वैविध्य और अभिनव जीवन-दर्शन की झलक मिलती है। आज मानवीय संवेदनाओं, चुनौतियों के इर्द-गिर्द रची-बसी कहानियों का एक विराट् वितान सामने है। अन्याय, शोषण, उत्पीड़न, कृत्रिम असमानता, विविध भेद, अधिकार-कर्तव्य से जुड़ी कहानियों का एक विशिष्ट रचनात्मक परिदृश्य सामने आया है।
अब कहानियाँ संघर्ष करती हैं, बोलती हैं, जूझती हैं, अपने हिस्से के आकाश पर आधिपत्य जमा रही हैं। इसी जद्दोजहद के बीच कहानियाँ संस्कार, संस्कृति, मानवीय गुणों, नैतिकता और जटिलता के लिए पाथेय भी जुटाती हैं; जीवन जीने का एक सहभागी, सुसंस्कृत, लालित्यपूर्ण, दूरगामी मार्ग भी प्रशस्त करती हैं।
प्रस्तुत पुस्तक 'आखिर क्यों ?' कोरे कागज पर उकेरी गई कुछ आड़ी-तिरछी अबोध रेखाएँ हैं- इन्हें आप जो नाम दें! पर इसमें नारी मन के विविध संवेदनशील मनोगतों को उलटा-सीधा रखने का स्वगत प्रयास किया गया है।
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