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नीलांबरजी में वह सृजनात्मक ऊर्जा है, जो किसी भी रचनाकार के लिए आवश्यक होती है। वस्तुतः यह ऊर्जा ही पाठकों को अपनी ओर खींचती है। घटनाओं, पात्रों, उनके चरित्रों और लेखक के विचारों से उनका तादात्म्य कराती है।
नीलांबरजी की कहानियाँ विषय-वस्तु और रूप-विधान के स्तर पर विशुद्ध कहानियों की श्रेणी में आती हैं। वे परंपरावादी होकर भी विषय-वस्तु की दृष्टि से यथार्थवादी हैं। उनकी कहानियों में समकालीन सामाजिक यथार्थ के सभी पक्ष, तथ्य, जीवन के अनुभव और मनःस्थितियाँ हैं। उन्होंने अपनी रचना को जीवन से जोड़ने की भरपूर कोशिश की है। ये कहानियाँ बोझिल या ऊबाऊ नहीं हैं। सहज, सरस, किस्सागोई से भरपूर और अनुभूति प्रधान हैं।
संग्रह की कहानियाँ अलग-अलग कालखंडों में लिखी गईं, जो अलग-अलग विषय-वस्तु की हैं। बावजूद इसके वे डेटेड नहीं लगतीं, क्योंकि उनमें निहित मानवीय संवदेना और सांस्कृतिक चेतना के स्वर सार्वकालिक हैं।
नीलांबरजी की अधिकांश कहानियाँ अपनी कहन शक्ति, रोचकता, कुतूहल और कथातत्त्व से भरपूर हैं। भाषा सहज और संप्रेष्य है। सामाजिक समस्याओं और जीवंत चरित्रों के कारण ये कहानियाँ पाठकों के दिल में अपनी जगह बनाएगी, ऐसी आशा है।
नीलांबर कौशिक
जन्म : 2 अगस्त, 1952, कानपुर।
शिक्षा : बी.एस-सी. (1972) क्राइस्ट चर्च कॉलेज, कानुपर।
रचना-संसार : ‘दस कहानियाँ’, ‘अद्भुत स्वप्न’ (कहानी-संग्रह), ‘कौन है, मौन है’ (काव्य-प्रश्नोत्तरी), ‘साजिश’ (उपन्यास), ‘नीलांबर कौशिक—चुनी हुई कहानियाँ’। अनेकानेक समवेत कहानी संकलनों और पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पंजाब नैशनल बैंक से उप-प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त।
पुरस्कार-सम्मान : राजभाषा पुरस्कार-2013; विद्याभूषण अलंकरण; राष्ट्रीय श्रीमंत माधवराज सिंधिया मेमोरियल अवार्ड-2015; दिव्यात्मा श्रीमती ज्ञानदेवी अवस्थी उपन्यासकार तथा साहित्य-सेवी सम्मान; हिंदी साहित्य सम्मान; गौरव सम्मान-2016; साहित्य सम्मान।
संप्रति : ‘एक छोटा सा प्रयास’ (मासिक पत्रिका) में सह संपादक।
संपर्क : 35/96-88, बंगाली मोहाल (कौशिकजी का हाता), कानपुर-208001