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भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता, विचारक और चिंतक शान्ता कुमार ने अपने छह दशकों के राजनैतिक जीवन में देश की विभिन्न समस्याओं को बहुत करीब से देखा है। उन्हें जब भी अवसर मिला है, उन्होंने इन समस्याओं पर अपनी चिंता ही व्यक्त नहीं की, अपितु अपनी लेखनी के माध्यम से इन समस्याओं के निदान की राह भी सुझाई है। उनके चिंतन का आधार समाज में अंतिम पंक्ति में खड़ा वह व्यक्ति है, जो आजादी के बाद से आज तक सदा उपेक्षित रहा है। इस उपेक्षा ने देश में आर्थिक विषमता का ऐसा जाल फैला दिया है कि समाज का कोई भी वर्ग इसके क्रूर पंजों से बच नहीं पाया है। अमीरी चमक रही है और गरीबी सिसक रही है। बढ़ती जनसंख्या के कारण सरकार के विकास संबंधी सभी प्रयास निरर्थक साबित हो रहे हैं।
छह दशकों की सक्रिय राजनीति के बाद चुनावी राजनीति को सम्मानजनक ढंग से अलविदा कहकर शान्ता कुमार ने सिद्धांतों और मूल्यों की राजनीति को नया आयाम प्रदान किया है, जो निस्संदेह प्रशंसनीय ही नहीं, अनुकरणीय भी है।
आशा है सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक विषयों पर पठनीय लेखों के इस संग्रह का पाठक भरपूर स्वागत करेंगे।
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अनुक्रम
प्रस्तावना —Pgs.7
1. अलविदा चुनावी राजनीति—उत्सव मना रहा हूँ —Pgs.13
2. गरीब किसान के लिए किसी की आँख में आँसू नहीं —Pgs.30
3. स्वामी विवेकानंद आए, आँसू बहाए और लौट गए —Pgs.36
4. योग—विश्व मानवता को भारत का अनमोल वरदान —Pgs.41
5. 44 साल पहले की वह अँधेरी रात —Pgs.45
6. कैसा आर्थिक विकास, जहाँ अमीरी चमकती रही, गरीबी सिसकती रही —Pgs.51
7. नहीं होने दिया था हिमाचल में व्यापम —Pgs.55
8. आरक्षण नीति में बुनियादी बदल की आवश्यकता —Pgs.60
9. कांग्रेस सरकार की एक प्रशंसनीय उपलब्धि —Pgs.64
10. गाँव-गरीब को समर्पित अंत्योदय सरकार —Pgs.68
11. भाजपा का विकास पर्व और कांग्रेस का विरोध पर्व —Pgs.73
12. हिंदू धार्मिक नेताओं से विनम्र निवेदन —Pgs.77
13. धर्म के नाम पर पाखंड—एक बड़ा संकट —Pgs.80
14. नोटबंदी एक समुद्र मंथन—अमृत भी, विष भी, विष पीना होगा —Pgs.87
15. बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के बंधन से अब देश मुक्त होगा —Pgs.92
16. किसान बेहाल—कर्ज माफी इलाज नहीं, अब चाहिए स्थायी समाधान —Pgs.97
17. यह हिंदुत्व नहीं है —Pgs.101
18. आज की सबसे बड़ी जरूरत—राष्ट्रीय जनसंख्या नीति —Pgs.105
19. सबसे गंभीर समस्या—बढ़ती आबादी का विस्फोट —Pgs.109
20. आधुनिक भारत के निर्माता—स्वामी विवेकानंद —Pgs.113
21. प्रधानमंत्रीजी! अंत्योदय मंत्रालय आवश्यक है —Pgs.117
22. नीरव मोदी के नाम एक पत्र —Pgs.121
23. स्वतंत्र भारत का अंधकार काल —Pgs.125
24. योग एक ईश्वरीय वरदान —Pgs.129
25. अतिक्रमण का मूल कारण है बढ़ती हुई जनसंख्या —Pgs.133
26. सामाजिक न्याय के बिना विकास गरीब से अन्याय —Pgs.135
27. दिल्ली विधानसभा चुनाव का परिणाम एक संदेश भी, एक खतरनाक चेतावनी भी —Pgs.139
28. नैतिकता व साहस, देश की सबसे बड़ी जरूरत —Pgs.144
29. ‘जय जवान’ तो हो गया, पर ‘जय किसान’ होना अभी बाकी है —Pgs.150
30. किसान आत्महत्याएँ व्यवस्था पर एक गहरा कलंक है —Pgs.154
31. भौतिकवाद का पागलपन तथा विवेक के बिना विज्ञान कहीं विनाश की ओर न ले जाए —Pgs.159
32. शहीदों की शहादत की अमानत है वोट—वोट अवश्य करें —Pgs.163
प्रबुद्ध लेखक, विचारवान राष्ट्रीय नेता व हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री शान्ता कुमार का जन्म हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले के गाँव गढ़जमूला में 12 सितंबर, 1934 को हुआ था। उनका जीवन आरंभ से ही काफी संघर्षपूर्ण रहा। गाँव में परिवार की आर्थिक कठिनाइयाँ उच्च शिक्षा पाने में बाधक बनीं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आकर मात्र 17 वर्ष की आयु में प्रचारक बन गए। तत्पश्चात् प्रभाकर व अध्यापक प्रशिक्षण प्राप्त किया।
दिल्ली में अध्यापन-कार्य के साथ-साथ बी.ए., एल-एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण कीं। तत्पश्चात् दो वर्ष तक पंजाब में संघ के प्रचारक रहे। फिर पालमपुर में वकालत की। 1964 में अमृतसर में जनमी संतोष कुमारी शैलजा से विवाह हुआ, जो महिला साहित्यकारों में प्रमुख हैं। 1953 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में ‘जम्मू-कश्मीर बचाओ’ आंदोलन में कूद पड़े। इसमें उन्हें आठ मास हिसार जेल में रहना पड़ा।
शान्ता कुमार ने राजनीतिक के क्षेत्र में शुरुआत अपने गाँव में पंच के रूप में की। उसके बाद पंचायत समिति के सदस्य, जिला परिषद् काँगड़ा के उपाध्यक्ष एवं अध्यक्ष, फिर विधायक, दो बार मुख्यमंत्री, फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री तक पहुँचे।
शान्ता कुमार में देश-प्रदेश के अन्य राजनेताओं से हटकर कुछ विशेष बात है। आज भी प्रदेशवासी उन्हें ‘अंत्योदय पुरुष’ और ‘पानी वाले मुख्यमंत्री’ के रूप में जानते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें— मृगतृष्णा, मन के मीत, कैदी, लाजो, वृंदा (उपन्यास), ज्योतिर्मयी (कहानी संग्रह), मैं विवश बंदी (कविता-संग्रह), हिमालय पर लाल छाया (भारत-चीन युद्ध), धरती है बलिदान की (क्रांतिकारी इतिहास), दीवार के उस पार (जेल-संस्मरण), राजनीति की शतरंज (राजनीति के अनुभव), बदलता युग-बदलते चिंतन (वैचारिक साहित्य), विश्वविजेता विवेकानंद (जीवनी), क्रांति अभी अधूरी है (निबंध), भ्रष्टाचार का कड़वा सच (लेख), शान्ता कुमार : समग्र साहित्य (तीन खंड) तथा कर्तव्य (अनुवाद)।