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श्री आनंद प्रकाश जैन हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक रहे हैं। पचास से अस्सी के दशक तक उनके नाम की खूब धूम थी। उनकी सभी सामाजिक और ऐतिहासिक रचनाओं को दिल खोलकर पाठकों ने सराहा। इस संग्रह में उनकी तेरह चुनी हुई ऐतिहासिक, सामाजिक और हास्य कहानियों का संग्रह है। एक अंतराल के बाद इस कृति को उनके प्रशंसकों के सामने रखते हुए हमें प्रसन्नता हो रही है। ‘रथ के पहिए’, ‘काली बेगम’, ‘अग्निपुरुष’, ‘गिरिजे का कंगूरा’, ‘अंतिम नग’, ‘अंतिम अस्त्र’, ‘हर्ष के आँसू’ और ‘पीले हाथ’ उनकी ऐतिहासिक कहानियाँ हैं। ‘बोलने वाला बुत’ एक हास्य-कथा है। अपनी ऐतिहासिक कहानियों में उन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों की सत्यता को बरकरार रखा। ‘रथ के पहिए’ में अहिंसा धर्म के पालक सम्राट् अशोक का हिंसक चेहरा, ‘अंतिम नग’ में बानों की सहेली बदरुन्निसा का उसके प्रति निश्छल प्रेम इसके उदाहरण हैं। इनमें से ज्यादातर कहानियों में नायिकाएँ पत्नी, दासी, नर्तकी रानी या विषकन्या हर रूप में नारी अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाती नजर आती हैं। इन मार्मिक कहानियों में नारी पात्रों में अपने आदर्शों, सिद्धांतों, कर्तव्यों व अधिकारों के लिए अपने प्राणों की आहुति देते सशक्त नारी के दर्शन होते हैं।
ये सभी कहानियाँ आपको आधुनिक समस्याओं में घिरे समाज से परिचित कराती हैं। श्री जैन के शारीरिक अवसान के बाईस साल हो गए। लेकिन आज भी इस उनकी कहानियाँ आधुनिक समाज का प्रतिनिधित्व करती हैं। सभी पाठकों के लिए यह संग्रह उनकी एक अनुपम भेंट ही तो हैं।
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अनुक्रम
भूमिका —Pgs. 7
1. रथ के पहिए —Pgs. 17
2. अग्निपुरुष —Pgs. 31
3. अंतिम अस्त्र —Pgs. 47
4. बोलने वाला बुत —Pgs. 58
5. हर्ष के आँसू —Pgs. 63
6. गिरजे का कंगूरा —Pgs. 75
7. काली बेगम —Pgs. 83
8. अंतिम नग —Pgs. 96
9. गलत गली —Pgs. 112
10. नाई —Pgs. 123
11. आमों का बाग —Pgs. 133
12. पीले हाथ —Pgs. 140
जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जनपद के कस्बा शाहपुर में 15 अगस्त, 1927 को हुआ था। उनकी पहली कहानी ‘जीवन नैया’ सरसावा से प्रकाशित मासिक ‘अनेकांत’ में सन् 1941 में प्रकाशित हुई थी। श्री जैन ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का कुशल संपादन किया। वे सन् 1959 से 1974 तक उस समय की प्रसिद्ध बाल पत्रिका ‘पराग’ के संपादक रहे। उन्होंने ‘चंदर’ उपनाम से अस्सी से अधिक रोमांचकारी उपन्यासों का लेखन किया।
उन्होंने अनेक ऐतिहासिक और सामाजिक उपन्यास लिखे जिनमें प्रमुख हैं—‘कठपुतली के धागे’, ‘तीसरा नेत्र’, ‘कुणाल की आँखें’, ‘पलकों की ढाल’, ‘आठवीं भाँवर’, ‘तन से लिपटी बेल’, ‘अंतर्मुखी’, ‘ताँबे के पैसे’ तथा ‘आग और फूस’। उन्हें अपने इस सामाजिक उपन्यास ‘आग और फूस’ पर उत्तर प्रदेश सरकार का श्लाघनीय पुरस्कार प्राप्त हुआ।