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यह पुस्तक आँखों देखी आजादी की लड़ाई का सजीव वर्णन करती है। ऐसी पुस्तक दूसरी नहीं है। दूर से आजादी की लड़ाई को बताना एक बात है और उस लड़ाई में सिपाही से सेनापति तक की भूमिका निभाते हुए उसका वर्णन करना बिल्कुल ही दूसरी बात। आचार्य कृपलानी आजादी के ठीक पहले लगभग 12 वर्षों (1934-46) तक कांग्रेस के महामंत्री रहे और आजादी के समय अर्थात् 1947 में वे कांग्रेस के अध्यक्ष थे। इसलिए उनकी आँखों देखी आजादी की लड़ाई आधुनिक भारतीय इतिहास अथवा भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है। आजादी की लड़ाई में अनेक धाराएँ थीं। यह पुस्तक मुख्यधारा की लड़ाई से परिचित कराती है, जिसके महानायक निःसंदेह महात्मा गांधी थे। इस पुस्तक में एक निष्पक्षता और थोड़ी दूरी बनाकर लड़ाई के नायकों और महानायक को देखने-दिखाने का ऐसा अद्भुत और सफल प्रयास है, जो किसी दूसरी पुस्तक में नहीं मिलता है।
आजादी के संघर्ष के हर मोड़ को समझना उस इतिहास का साक्षी होना है। उस दौर की महत्वपूर्ण घटनाओं को जानना जितना जरूरी है, उससे ज्यादा जरूरी यह जानना है कि वे किन परिस्थितियों में जन्म ले रही थीं; उनका प्रभाव क्या था। यह पुस्तक विभाजन की दृष्ट से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें दस अध्याय इससे संबंधित हैं। क्या भारत विभाजन टल सकता था? भारत विभाजन के असली कारण क्या थे? यह जानना रोचक है कि स्वयं कृपलानीजी ने इस बारे में क्या लिखा है।
इस पुस्तक में आजादी की लड़ाई के इतिहास की भरपूर संदर्भ सामग्री है, जिसका उपयोग हर पीढ़ी उस लड़ाई के गूढ़ तथ्यों को सविस्तार जानने के लिए कर सकती है।