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अंतरिक्ष अन्वेषण और अंतरिक्ष में जाकर विभिन्न प्रकार के कार्य करना, अंतरिक्ष से पृथ्वी अवलोकन इत्यादि बातें एक सामान्य व्यक्ति के लिए स्वप्न ही लगती हैं। अंतरिक्ष के नाम से ही एक रोमांच पैदा हो जाता है—कैसी होगी वह दुनिया, कैसे वहाँ जाया जाएगा, कैसे रहा जाएगा, खान-पान, दैनंदिन कार्य और सबसे ऊपर—वहाँ रहकर प्रयोग करना, खोज करना—एक सनसनाहट सी अनुभव करवा देता है।
'अंतरिक्ष की कहानी, अंतरिक्ष यात्रियों की जुबानी’ में अंतरिक्ष यात्रियों ने अपनी शिक्षा के विषय में तथा शिक्षा के दौरान हुई आर्थिक परेशानियों का जिक्र किया है। स्पेस शटल की प्रथम महिला कमांडर के पिता उसे पढ़ाना चाहते थे; लेकिन उनके पास बेटी को पढ़ाने के लिए पैसे नहीं थे। बेटी ने छोटी-छोटी नौकरी करके शिक्षा के लिए धन अर्जित किया। जॉन ग्लेन एक प्लंबर के बेटे थे; सभी स्पेस शटलों से यात्रा कर चुके विख्यात सर्जन डॉ. स्टोरी मुसाग्रेव एक किसान के बेटे थे। लेकिन जीवन का यह सत्य है कि प्रतिभा पैसे की मोहताज नहीं होती। अभावों में जीवन जीने के बावजूद ये लोग विश्वविख्यात अंतरिक्ष यात्री बने। इसमें अंतरिक्ष अन्वेषण के विभिन्न पहलुओं के बारे में अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा विस्तार से तथा रोचक-प्रश्नोत्तर शैली में बताया गया है, जो ज्ञानपरक तो है ही, रोमांचपूर्ण भी है।
अंतरिक्ष की रोचक जानकारियों से भरपूर पठनीय पुस्तक।
मोतीलाल नेहरू रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज से बी.ई. एवं रुड़की विश्वविद्यालय से एम.ई. की उपाधियाँ प्राप्त।
कृतित्व : अब तक अंतरिक्ष विज्ञान से संबंधित लगभग ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित।
पुरस्कार-सम्मान : उत्तर प्रदेश सरकार का ‘संपूर्णानंद पुरस्कार’, राजभाषा विभाग का ‘इंदिरा गांधी पुरस्कार’ तथा इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स के ‘राष्ट्रपति पुरस्कार’ से पुरस्कृत। ‘सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट’ एवं इसरो (ISRO) की ओर से ‘डिस्टिंग्विश्ड अचीवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित। ऑल इंडिया सोसाइटी फॉर इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कंप्यूटर टेक्नोलॉजी संस्था द्वारा ‘डॉ. सी.वी. रमण तकनीकी लेखन पुरस्कार’ से पुरस्कृत।
संप्रति : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में वरिष्ठ संचार इंजीनियर के पद से सेवानिवृत्त होकर विज्ञान-लेखन में रत।