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इस उपन्यास में नीना और दीप्ति दो-धु्रवीय पात्र हैं पर एक-दूसरे के पूरक हैं। जहाँ दीप्ति शालीनता और परिपक्वता का सागर है, वहीं नीना मानसिक अवसाद, उच्छृंखलता तथा अवसाद से घिरी एक अपरिपक्व लड़की है। मनोवैज्ञानिकता के धरातल पर अगर हम देखें तो नीना जैसा व्यक्तित्व अतृप्ति में डूब जाता है; अगर उसे एक सहारा नहीं मिलता है। कितना कठिन होता है स्त्री के लिए बार-बार छलावे से गुजरना! नीना स्वाभिमानी लड़की है किंतु परिस्थितियाँ उसे सिद्धार्थ से शादी करने को प्रेरित करती हैं; पर फिर उसका स्वाभिमान उसे बार-बार सोचने पर मजबूर करता है कि कहीं उसने सिद्धार्थ के जीवन में अतृप्ति के बीज तो नहीं बो दिए; और यही भाव उसे जीने की इच्छा से दूर ले जाता है।
इस उपन्यास में स्त्री के डर, अतृप्ति, प्रेम, मित्रता, विश्वास, सामाजिकता, असुरक्षा का विश्लेषण मनोवैज्ञानिकता के आधार पर करने का प्रयास किया है।
अंत तक तृप्ति और संतुष्टि को ढूँढ़ती नीना की आँखें ही इस ‘अंतहीन तलाश’ की रीढ़ बनीं। स्त्री मनोविज्ञान को विश्लेषित करता मर्मस्पर्शी एवं संवेदनशील पठनीय उपन्यास।
शिक्षा : एम.ए. (हिंदी, राजनीति-शास्त्र), एम.एड., पी-एच.डी. (हिंदी)।
रचना-संसार : ‘अभिनव संग्रह’ (कविता-संग्रह), ‘रामचरित मानस और रघुवंश’ (एक तुलना), ‘यथार्थ की चादर’ (उपन्यास), ‘कोहरे में किलकारी’, ‘मुझे घर ले चलो’, ‘जिज्ञासु बच्चे’ (कहानी-संग्रह), ‘हिंदी का वैश्विक परिदृश्य, हिंदी : दशा और दिशा’, ‘प्रेमचंद की स्त्री विमर्श की कहानियाँ’, ‘प्रेमचंद के सांस्कृतिक मूल्यों की कहानियाँ’ (संपादन) एवं पत्र-पत्रिकाओं में अनेक रचनाएँ प्रकाशित।
विश्व हिंदी सम्मेलन 2015, भोपाल में सहभागिता। ग्रीन सिटी वेलफेयर सोसाइटी, हल्द्वानी की अध्यक्षा।
सम्मान-पुरस्कार : काव्य साधक सम्मान, डॉ. राम गोपाल चतुर्वेदी सम्मान, सारस्वत संभयार्चना पुरस्कार, साहित्य उपलब्धि सम्मान, उद्भव साहित्य सम्मान, साहित्य सेवा सम्मान, मानव सेवा सम्मान, साहित्य शिरोमणि सम्मान, उ.प्र. हिंदी संस्थान का पं. बद्री प्रसाद शिंगलू स्मृति सम्मान, सावित्री सक्सेना स्मृति साहित्य सम्मान एवं अन्य सम्मान।
पेशे से शिक्षिका, अध्ययन-अध्यापन, सामाजिक क्षेत्र में क्रियाशील।
कृतित्व : शोध प्रबंध शीघ्र प्रकाश्य।