₹200
‘हम लोग अपनी शैक्षिक योग्यता प्रमाणित कर चुके हैं। जवान हैं, मेहनत कर सकते हैं। कोई कमी नहीं है, किंतु आपकी महान् व्यवस्था हमारे लिए दैनिक मजूर के बराबर वेतन का भरोसा भी तो हमें नहीं दे पाती। हम क्या करें अपनी योग्यता का? हम क्या करें अपनी ऊर्जा का? क्या करें अपने खौलते लहू का? और अपने उबलते हुए गुस्से का क्या करें? हमारे साथ पढ़नेवाले फिसड्डी लड़के पाँच सितारा जिंदगी जी रहे हैं, सिर्फ इसलिए कि वे किसी मंत्री के बेटे हैं या आई.ए.एस. अफसर के दामाद हैं या बड़े तस्कर के सपूत हैं!’
‘जिन्होंने हमें पहचाना, हमारे माथे पर लगा बेरोजगार का दाग पोंछ दिया, हमें बीस, तीस, कभी-कभी चालीस हजार रुपए महीने तक वेतन देते हैं, वे कौन हैं, हम नहीं जानते? जानने की उत्सुकता न रखना ही हमारी ‘योग्यता’ है।
आपकी न्याय-व्यवस्था देश को बेचकर स्विस बैंक भरनेवालों को गंदा नहीं कहती। भूख से बिलबिलाता बच्चा होटल से रोटी चुराकर खा ले तो उसके लिए जेल की सजा है और देश को हर तरह से लूटनेवालों के लिए है सार्वजनिक अभिनंदन-समारोह।’
—इसी संग्रह से ‘अपहरण’ की कहानियाँ समाज में व्याप्त सामाजिक-आर्थिक असमानता, कुरूपता और विसंगतियों को तो उजागर करती ही हैं, साथ ही राजनीति, चुनाव और मानवीय संबंधों का गहराई से विश्लेषण करती हैं। पठनीयता से भरपूर सुरुचिपूर्ण कहानियाँ।
जन्म : शाहपुर कुरमौटा, कुशीनगर (उ.प्र.)।
आचार्य-अध्यक्ष, हिंदी विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर के पद से 1998 में सेवानिवृत्त।
प्रकाशन : ग्यारह उपन्यास, छह कहानी संग्रह, आठ आलोचना ग्रंथ, दो दर्जन से अधिक संपादित ग्रंथ, साठ से अधिक पुस्तकों में सहलेखन।
सम्मान : विद्याभूषण, कथाश्री, भारतेंदु सम्मान, सेतु शिखर सम्मान, श्रुति कीर्ति शिखर सम्मान, भारत-भरती शताब्दी सम्मान आदि।
संपर्क : शीतल सुयश, राप्ती चौक, आरोग्य मंदिर, गोरखपुर-273003 दूरभाष : 0551-2284757