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प्रख्यात कन्नड़ लेखिका श्रीमती सुधा मूर्ति साहित्य एवं समाज-सेवा के क्षेत्र में अपने अनुपम योगदान के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका कहना है कि उन्होंने अपने बचपन में सुनी कहानियों में से कुछ कहानियों में निहित आदर्शों को अपने अनुभव के आधार पर इस पुस्तक की कहानियों में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। अपने कार्य के दौरान वे अनेक बच्चों से मिली हैं, जो अपने मन में कई सपने, कई आकांक्षाएँ सँजोए रहते हैं।
हमारे देश में विभिन्न धर्मों, भाषाओं, बोलियों एवं संस्कृति को विशाल और बृहत् रूप में देखा जा सकता है। ये सभी आपस में एकसूत्र में गुँथे हुए हैं। प्रस्तुत पुस्तक ‘अपना दीपक स्वयं बनें’ में सदाचार, ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता आदि शिष्टाचार सिखानेवाली अनुभवजन्य कहानियाँ संकलित हैं। लेखिका ने अपने अध्यापकीय जीवन के सच्चे एवं जीवंत अनुभवों को इसमें उड़ेलने का महती प्रयास किया है।
हमें विश्वास है, यह पुस्तक बच्चों को ही नहीं, बड़ों को भी सच्चरित्र, निर्णय-सक्षम, उदार बनाने एवं जीवन-पथ पर प्रगति की राह में अग्रसर रहने में उनका मार्गदर्शन करेगी।
सुधा मूर्ति का जन्म सन् 1950 में उत्तरी कर्नाटक के शिग्गाँव में हुआ था। इन्होंने कंप्यूटर साइंस में एम.टेक. किया और अब इन्फोसिस फाउंडेशन की अध्यक्षा हैं। अंग्रेजी और कन्नड़ की एक बहुसर्जक लेखिका। इन्होंने उपन्यास, तकनीकी पुस्तकें, यात्रा-वृत्तांत, कहानी-संग्रह, कथेतर रचनाएँ तथा बच्चों के लिए अनेक पुस्तकें लिखी हैं।
इनकी अनेक पुस्तकों का भारत की सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद हो चुका है और पूरे देश में उनकी 4 लाख से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं। इन्हें सन् 2006 में साहित्य के लिए ‘आर.के. नारायण पुरस्कार’ और ‘पद्मश्री’ तथा 2011 में कन्नड़ साहित्य में उत्कृष्टता के लिए कर्नाटक सरकार द्वारा ‘अट्टिमब्बे पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया है।