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Author Vrindavan Lal Verma
Features
  • ISBN : 8173150141
  • Language : Hindi
  • Publisher : Prabhat Prakashan
  • Edition : 1st
  • ...more

More Information

  • Vrindavan Lal Verma
  • 8173150141
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 1st
  • 2010
  • 236
  • Hard Cover

Description

"एक दिन आया जब पुस्तक पूरी हो गई । वह दिन था 17 जून । साथ में अयोध्या प्रसाद .शर्मा थे, पुस्तक पूरी करने में ठीक साठ दिन लगे थे । मैं पांडुलिपि लेकर उसी गढ़े में गया जिसमें 17 अप्रैल की रात- भर उधेड़-बुन में जागता रहा था । छिपाऊँगा नहीं कि मैं एक रूमाल में बाँधकर थोड़े से फूल भी ले गया था । मैंने अपने इष्‍ट को वे फूल चढ़ाए और नतमस्तक होकर धन्यवाद दिया । प्रार्थना की कि मरते दम तक लिखता रहूँगा ।''

-इसी पुस्तक से

डॉ० वृंदावनलाल वर्मा जैसे थोडे ही उपन्यासकार होते हैं जो इतिहास को कल्पना-मंडित कर इतिहास से अधिक विश्‍वसनीय, कमनीय और प्रासंगिक बना देते हैं । उनके उपन्यासों में कल्पना का वैभव सर्वत्र मौजूद है, वे बुंदेलखंड की नदियाँ, पहाड़ों, भरकों और डमगे को अपनी कथा में ऐसा गूँथ देते हैं कि बुंदेलखड के भूगोल को एक नई दीप्‍त‌ि मिलती है और बुंदेलखंड के इतिहास को एक नई समृद्धि । स्वयं वर्माजी द्वारा लिखा गया अपना जीवन -वृत्त, हिंदी साहित्य के इतिहास की दृष्‍ट‌ि से जो परम उपादेय है ।

The Author

Vrindavan Lal Verma

मूर्द्धन्य उपन्यासकार श्री वृंदावनलाल वर्मा का जन्म 9 जनवरी, 1889 को मऊरानीपुर ( झाँसी) में एक कुलीन श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ था । इतिहास के प्रति वर्माजी की रुचि बाल्यकाल से ही थी । अत: उन्होंने कानून की उच्च शिक्षा के साथ-साथ इतिहास, राजनीति, दर्शन, मनोविज्ञान, संगीत, मूर्तिकला तथा वास्तुकला का गहन अध्ययन किया ।
ऐतिहासिक उपन्यासों के कारण वर्माजी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्‍त हुई । उन्होंने अपने उपन्यासों में इस तथ्य को झुठला दिया कि ' ऐतिहासिक उपन्यास में या तो इतिहास मर जाता है या उपन्यास ', बल्कि उन्होंने इतिहास और उपन्यास दोनों को एक नई दृष्‍ट‌ि प्रदान की ।
आपकी साहित्य सेवा के लिए भारत सरकार ने आपको ' पद‍्म भूषण ' की उपाधि से विभूषित किया, आगरा विश्‍वविद्यालय ने डी.लिट. की मानद् उपाधि प्रदान की । उन्हें ' सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार ' से भी सम्मानित किया गया तथा ' झाँसी की रानी ' पर भारत सरकार ने दो हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया । इनके अतिरिक्‍त उनकी विभिन्न कृतियों के लिए विभिन्न संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित व पुरस्कृत किया ।
वर्माजी के अधिकांश उपन्यासों का प्रमुख प्रांतीय भाषाओं के साथ- साथ अंग्रेजी, रूसी तथा चैक भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है । आपके उपन्यास ' झाँसी की रानी ' तथा ' मृगनयनी ' का फिल्मांकन भी हो चुका है ।

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