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सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक आर्कमिडीज का जन्म ई.पू. 275 में यूनान के पास सायराक्यूज शहर में हुआ था। उनके पिता एक प्रसिद्ध खगोलशास्त्री थे, जिन्होंने आर्कमिडीज को गणना करना सिखाया। शीघ्र ही वे गणित में पारंगत हो गए। उस समय के उत्कृष्ट शिक्षा केंद्र अलेक्जेंड्रिया से शिक्षा प्राप्त कर वे सायराक्यूज लौट आए थे।
आर्कमिडीज ने एक के बाद एक आविष्कार किए। पानी के टब में नहाते-नहाते ही उन्होंने ‘उत्प्लावन बल’ की खोज कर डाली। लीवर और घिरनियों का उनका सिद्धांत बड़ा ही उपयोगी सिद्ध हुआ। उस जमाने में ही उन्होंने एक उत्कृष्ट सैन्य जलयान तैयार करके दिखाया, जो दो हजार वर्षों तक सबसे बड़ा और अनूठा बना रहा। आश्चर्य की बात है कि आज से 2200 वर्ष पूर्व आर्कमिडीज ने सौर ऊर्जा के महत्त्व को समझ लिया था।
ब्रह्मांड की कल्पना कर उन्होंने एक अद्भुत शोध-ग्रंथ लिखा तथा खगोलीय पिंडों की कल्पना की। उनकी दो गणितीय रचनाएँ बड़ी प्रसिद्ध हैं—‘स्टोमैकियन’ तथा ‘द कैटल प्रॉब्लम’।
आर्कमिडीज अपने जीवनकाल में अपने चमत्कारी आविष्कारों से सभी के आकर्षण का केंद्र बने रहे, पर मृत्यु के पश्चात् वे कवियों की रचनाओं का केंद्रबिंदु बन गए।
अद्भुत वैज्ञानिक आर्कमिडीज के जीवन और उनके आविष्कारों का प्रामाणिक विवरण देती प्रेरणाप्रद जीवनी।
जन्म : 12 जनवरी, 1960 को इटावा (उ.प्र.) में।
शिक्षा : विकलांग होने के बावजूद हाई स्कूल तथा इंटरमीडिएट की परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कीं। सन् 1983 में रुड़की विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग की उपाधि प्राप्त कर सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (CEL) में सहायक अभियंता के रूप में नियुक्त हुए। विभिन्न विभागों में काम करते हुए आजकल मुख्य प्रबंधक के रूप में काम कर रहे हैं।
अब तक कुल 32 पुस्तकें तथा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 300 लेख प्रकाशित।
पुरस्कार-सम्मान : सन् 1996 में राष्ट्रपति पदक, 2001 में ‘हिंदी अकादमी सम्मान’ तथा योजना आयोग द्वारा ‘कौटिल्य पुरस्कार’। सन् 2003 में अपारंपरिक ऊर्जा स्रोत मंत्रालय द्वारा ‘प्राकृतिक ऊर्जा पुरस्कार’, 2004 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा ‘सृजनात्मक लेखन पुरस्कार’, विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा ‘डॉ. मेघनाद साहा पुरस्कार’ तथा महासागर विकास मंत्रालय द्वारा ‘हिंदी लेखन पुरस्कार’।