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पृथ्वी के सुदूर उत्तरी भाग में स्थित आर्कटिक क्षेत्र अपने में एक पूरे महासागर को समेटे हुए है और वर्ष में अधिकांश समय बर्फ से ढका रहता है। यद्यपि यह इतना निर्जन प्रदेश तो नहीं है, जैसा कि एकदम दक्षिण में स्थित अंटार्कटिक, परंतु संसार के सबसे विरल आबादीवाले क्षेत्रों में से एक अवश्य है।
भारत के लिए आर्कटिक महासागर का विशेष महत्त्व है। यह महासागर न सिर्फ हमारी जलवायु बल्कि मानसून पवनों को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से प्रभावित करता है, इसलिए आर्कटिक का गहन अध्ययन हमारे वैज्ञानिकों के लिए समय-संगत है।
प्रस्तुत पुस्तक आर्कटिक क्षेत्र की भौतिक रचना, इसकी खोज का इतिहास, जलवायु, बर्फ, खनिज, यहाँ के निवासी, यहाँ पाई जानेवाली वनस्पतियों एवं जीव-जंतुओं और भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों इत्यादि का रोचक वर्णन सरल भाषा में करने का प्रयास किया गया है। पुस्तक के लेखक डॉ. निलय खरे स्वयं तीन बार आर्कटिक जा चुके हैं। उनके स्वयं के अनुभवों और व्यावहारिक ज्ञान से परिपूर्ण यह पुस्तक अत्यंत प्रामाणिक और जानकारीपरक बन गई है।
डॉ. निलय खरे
समुद्र भू-वैज्ञानिक हैं। कंप्यूटर में डिप्लोमा, फ्रांसीसी भाषा में प्रवीणता एवं मानव संसाधन प्रबंधन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त। नाना प्रकार की मेरिट छात्रवृत्तियों से सम्मानित। समुद्रीय/ध्रुवीय विज्ञान के क्षेत्र में लगभग 23 वर्षों का अनुभव। इंडियन साइंस कांग्रेस एसोसिएशन का ‘युवा वैज्ञानिक पुरस्कार’, कैंब्रिज विश्वविद्यालय में उच्च शोध हेतु बॉयसकास्ट फेलोशिप प्राप्त। इनके अतिरिक्त शोध के लिए भारत ज्योति पुरस्कार सहित अनेक संस्थानों द्वारा सम्मानित। राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में सौ से अधिक वैज्ञानिक लेख प्रकाशित। अनेक हिंदी एवं अंग्रेजी पुस्तकों का लेखन एवं संपादन। संप्रति पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में निर्देशक स्तर के वैज्ञानिक।