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Ashtavakra Geeta   

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Author Swami Prakhar Pragyanand
Features
  • ISBN : 9789386871466
  • Language : Hindi
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  • Kindle Store

More Information

  • Swami Prakhar Pragyanand
  • 9789386871466
  • Hindi
  • Prabhat Prakashan
  • 2019
  • 152
  • Hard Cover
  • 250 Grams

Description

भारतीय पौराणिक साहित्य-भंडार में एक-से-एक अप्रतिम बहुमूल्य रत्‍न भरे पड़े हैं। अष्‍टावक्र गीता अध्यात्म का शिरोमणि ग्रंथ है। इसकी तुलना किसी अन्य ग्रंथ से नहीं की जा सकती।
अष्‍टावक्रजी बुद्धपुरुष थे, जिनका नाम अध्यात्म-जगत् में आदर एवं सम्मान के साथ लिया जाता है। कहा जाता है कि जब वे अपनी माता के गर्भ में थे, उस समय उनके पिताजी वेद-पाठ कर रहे थे, तब उन्होंने गर्भ से ही पिता को टोक दिया था—‘शास्‍‍त्रों में ज्ञान कहाँ है? ज्ञान तो स्वयं के भीतर है! सत्य शास्‍‍त्रों में नहीं, स्वयं में है।’ यह सुनकर पिता ने गर्भस्थ शिशु को शाप दे दिया, ‘तू आठ अंगों से टेढ़ा-मेढ़ा एवं कुरूप होगा।’ इसीलिए उनका नाम ‘अष्‍टावक्र’ पड़ा।
‘अष्‍टावक्र गीता’ में अष्‍टावक्रजी के एक-से-एक अनूठे वक्‍तव्य हैं। ये कोई सैद्धांतिक वक्‍तव्य नहीं हैं, बल्कि प्रयोगसिद्ध वैज्ञानिक सत्य हैं, जिनको उन्हेंने विदेह जनक पर प्रयोग करके सत्य सिद्ध कर दिखाया था। राजा जनक ने बारह वर्षीय अष्‍टावक्रजी को अपने सिंहासन पर बैठाया और स्वयं उनके चरणों में बैठकर शिष्य-भाव से अपनी जिज्ञासाओं का शमन कराया। यही शंका-समाधान अष्‍टावक्र संवाद रूप में ‘अष्‍टावक्र गीता’ में समाहित है।
ज्ञान-पिपासु एवं अध्यात्म-जिज्ञासु पाठकों के लिए एक श्रेष्‍ठ, पठनीय एवं संग्रहणीय आध्यात्मिक ग्रंथ।

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विषय-सूची

श्री अष्टावक्र गीता के अनुकरणीय सारतत्त्व Pgs. १५

पहला प्रकरण Pgs. १७

दूसरा प्रकरण Pgs. ३८

तीसरा प्रकरण Pgs. ५२

चौथा प्रकरण Pgs. ५८

पाँचवाँ प्रकरण Pgs. ६२

छठा प्रकरण Pgs. ६४

सातवाँ प्रकरण Pgs. ६६

आठवाँ प्रकरण Pgs. ६८

नौवाँ प्रकरण Pgs. ७१

दसवाँ प्रकरण Pgs. ७५

ग्यारहवाँ प्रकरण Pgs. ७८

बारहवाँ प्रकरण Pgs. ८२

तेरहवाँ प्रकरण Pgs. ८७

चौदहवाँ प्रकरण Pgs. ९२

पंद्रहवाँ प्रकरण Pgs. ९५

सोलहवाँ प्रकरण  Pgs. १०२

सत्रहवाँ प्रकरण Pgs. १०७

अठारहवाँ प्रकरण Pgs. ११४

उन्नीसवाँ प्रकरण Pgs. १४५

बीसवाँ प्रकरण Pgs. १४८

The Author

Swami Prakhar Pragyanand

(शिवानंद आश्रम, ऋषिकेश)
जन्म :13 दिसंबर,1932 को।
शिक्षा : एम.कॉम.।
प्रकाशन : ‘योगवासिष्‍ठ सार’, ‘वास्तुशास्‍त्र सार—दोष-निवारण की सरल विधियाँ एवं आध्यात्मिक उपचार’, ‘वैकल्पिक चिकित्सा-पद्धतियों द्वारा असाध्य रोगों का उपचार’, ‘यंत्र-मंत्र शक्‍ति’, ‘कुंडलिनी साधना-अमृत कलश’, ‘गीता के अनुकरणीय सारतत्त्व’।
संपर्क : जे-2/7, विजय नगर, धोबी घाट के पीछे, कानपुर (उ.प्र.)।
दूरभाष : 0512-2241454

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