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संत पंचमी में केवल एक दिन शेष था। कौशांबी की साज-सज्जा अवर्णनीय थी। सभी राजपथ, हट्ट, चौहट्ट, पण्यगृह, राजप्रासाद और गगनचुंबी धवल अट्टालिकाएँ रंग-बिरंगी पताकाओं से सुसज्जित थीं। घरों के प्रवेश द्वारों पर अशोक एवं आम्र-पल्लवों के वंदनवार लटकाए गए थे। घरों के मुख्य द्वारों के सामने रंग-बिरंगे चूर्गों से अल्पनाएँ बनाई गई थीं। नगर के प्रमुख राजमार्गों तथा चतुष्पथों पर पल्लवों एवं पुष्पों से स्वागत द्वारों का निर्माण किया गया था। चतुष्पथों पर संस्थापित कौशांबी के भूतपूर्व सम्राटों की प्रतिमाओं को रासायनिक चूर्णो से विभासित कर पुष्प मालाओं से सुसज्जित किया गया था।
-इसी उपन्यास से
इस इतिहास-सम्मत उपन्यास में चंद्रवंशीय कौशांबी सम्राट् सहस्रानीक और उनके ओजस्वी आत्मज उदयन की रोमांचक-रोमानी कथा आकर्षक शैलीशिल्प में प्रस्तुत है। लेखक की मौलिक भावनाएँ घटनाक्रम की रोचकता को निरंतर प्रभावपूर्ण बनाती हैं। भारतीय संस्कृति-सभ्यता के आदि-स्रोत कथ्य की तह से सतह तक एक से हैं। इस कृति में उपन्यास कला का नवीन आयाम दिखाई देता है, जो इसकी पठनीयता का पोषक है।
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अनुक्रम
आमुख —Pgs. 9
अभिमत —Pgs. 15
दो शब्द —Pgs. 17
1. प्रतिभा-पौरुष का प्रतीक-सहस्रानीक —Pgs. 21
2. राज्याभिषेक —Pgs. 25
3. बासंती सौरभ —Pgs. 29
4. सीमांत पर घटनाक्रम —Pgs. 35
5. सीमांत के घटनाचक्र —Pgs. 41
6. बंदियों की मुक्ति —Pgs. 45
7. नगाधिराज हिमालय —Pgs. 51
8. अमरावती का लालित्य —Pgs. 59
9. तिलोत्तमा द्वारा शाप —Pgs. 63
10. सरोवर-सुषमा —Pgs. 71
11. महिमामयी मृगावती —Pgs. 77
12. प्रणय-परिणय —Pgs. 82
13. मगध से युद्ध —Pgs. 97
14. राज-दंपती के स्वप्न —Pgs. 103
15. संगम-स्नान —Pgs. 110
16. रानी का दुराग्रह एवं गंगासागर-यात्रा —Pgs. 113
17. दुर्घटना —Pgs. 119
18. महर्षि जमदग्नि का आश्रम —Pgs. 127
19. शोक संतप्त सम्राट् —Pgs. 133
20. कुमार जन्म —Pgs. 138
21. कौशांबी में नवरात्र पर्व —Pgs. 142
22. संस्कार एवं शैशव —Pgs. 147
23. सम्राट् की श्रीवस्ती-यात्रा —Pgs. 151
24. युद्ध परिषद् की मंत्रणा —Pgs. 160
25. आचार्य विश्वकीर्ति मांडव्य —Pgs. 162
26. युद्ध —Pgs. 166
27. उदयन का हस्ति-सम्मोहन —Pgs. 171
28. सर्पाजीविक की कौशांबी यात्रा —Pgs. 177
29. विजयोत्सव —Pgs. 181
30. तापसी मृगावती —Pgs. 189
31. सम्राट् की उदयाद्रि यात्रा —Pgs. 191
32. वैशाली में विश्राम —Pgs. 197
33. मिथिला विराम —Pgs. 204
34. उपगिरि कांतार की यात्रा —Pgs. 207
35. पिता-पुत्र भेंट —Pgs. 215
36. पुनर्मिलन —Pgs. 219
37. साम्राज्ञी का कौशांबी पहुँचना —Pgs. 225
38. आकुलता का सुखद विराम —Pgs. 228
परिशिष्ट —Pgs. 231
श्री मोहनलाल उपाध्याय का जन्म 21 मई, 1920 को लोहई (मथुरा) में हुआ था। उनके पिताजी पं. नंनदकिशोर उपाध्याय एक विद्यालय में हेडमास्टर थे। मोहनलाल जी बाल्यकाल से ही अध्ययनशील और मेधावी थे। उन्होंने संस्कृत और अंग्रेजी में एम.ए. की डिग्रियाँ अर्जित कीं। वे उत्तर प्रदेश के जाने-माने शिक्षाविद् रहे और लंबे समय तक राजकीय इंटर कॉलेजों में अंग्रेजी के प्रवक्ता के रूप में कार्य किया। वर्ष 1980 में अलीगढ़ के राजकीय इंटर कॉलेज से अवकाश प्राप्त किया।
कई वर्षों के शोध के उपरांत अपना प्रथम उपन्यास 'अतीत के अंतराल प्रकाशित किया। इसके अतिरिक्त एक और उपन्यास 'प्रणय वीणा' भी प्रकाशित हो चुका है। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने ‘अतीत के अंतराल के लिए 'सर्जना पुरस्कार' तथा 'प्रणय वीणा' के लिए बाबू प्रेमचंद पुरस्कार' प्रदान किए। सन् 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने इन उपन्यासों पर लेखक को एक प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया था।