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बिहार का इतिहास दीर्घकालीन है। इस प्रदेश ने सभ्यता-संस्कृति के अनेक आरोह-अवरोह देखे हैं। अठारहवीं सदी के बिहार का भी गौरवशाली इतिहास रहा है। प्रस्तुत पुस्तक का महत्त्व इस बात को लेकर है कि इसमें बिहार के मध्यकालीन बनते-बिगड़ते समाज पर पर्याप्त रोशनी पड़ती है। पुस्तक में जिन घटनाओं का जिक्र किया गया है, उनमें कुछ, जैसे बक्सर विजय तथा स्थायी भू-बंदोबस्ती का प्रभाव तो अखिल भारतीय रहा है। बक्सर विजय ही वह संक्रांति काल है, जहाँ से अंग्रेजों ने अपने उपनिवेशवाद के घोड़े को ऐड़ लगाई थी। उस घोड़े ने पूरे भारत में दौड़-दौड़कर अपने अंग्रेजी साम्राज्य के झंडे को बुलंद किया। स्थायी भू-बंदोबस्ती का अखिल भारतीय चरित्र है। इस ढर्रे पर उसने पूरे भारत में भू-बंदोबस्ती को अंजाम दिया। जहाँ तक छोटे-छोटे जमींदारों के बीच वर्चस्व की लड़ाइयों तथा उनपर अंग्रेजी राज्य के कसते शिकंजे का सवाल है, इसी तरीके से पूरे भारत में एक शोषक वर्ग का निर्माण किया गया, जिनका आवश्यक गंठजोड़ तत्कालीन शासक वर्ग के साथ था।
इतिहास के जानकारों, विद्यार्थियों व आम पाठकों के लिए समान रूप से पठनीय जानकारीपरक पुस्तक।
जन्म : 07 मार्च, 1948 को महसोनी में।
शिक्षा : एम. ए. (मनोविज्ञान)
शोध : मनोभाषिकी
कृतियाँ : बिहार में स्कूली शिक्षा, प्रारंभिक शिक्षा की चुनौतियाँ, लाल घंघरिया (गीत संकलन), समानता, शिक्षा और समाज (यंत्रस्थ)।
साहित्यिक सक्रियता : समकालीन भारतीय साहित्य, आजकल, कतार, समकालीन जनमत, सबलोग, लोकायत, अंगिकालोक, युवा संवाद, बी.ई.पी. आह्वान में गीत, रिर्पोताज एवं कहानियाँ प्रकाशित।
संपादन : समतल, संवाद एवं शिक्षा संवाद।
संप्रति : बिहार शिक्षा परियोजना परिषद् में कार्यरत।
सपंर्क : बिहार शिक्षा परियोजना जिला स्तरीय कार्यालय, लाल दरवाजा मुंगेर।
स्थानीय पता : ग्राम-महसोनी, पत्रालय-कजरा, जिला-लखीसराय बिहार-811309।