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हालाँकि औषधीय पौधों पर वर्तमान में बहुत सी पुस्तकें बाजार में उपलब्ध हैं; मगर उनमें अपने विषय की दी हुई जानकारियों अनुभव व ज्ञान के हिसाब से अल्प ही हैं। इस पुस्तक में विविध संस्थाओं, विद्यापीठों तथा कृषि कार्य से प्राप्त अपनी और अन्य संबंधित किसानों की अनुभवपरक जानकारियाँ देने का प्रयत्न किया गया है।
महत्त्वपूर्ण बात यह हें कि इस पुस्तक में उन्हीं पौधों को शामिल किया गया है, जो ज्यादा प्रचलित हैं और बाजार में जिनकी अत्यधिक माँग है तथा जो अलग-अलग जलवायु एवं भइम के प्रकार से व्यावसायिक फसल के तौर पर उपयोगी हैं।
जंगलों के विनाश से कई वनौषधियाँ विलुप्तप्राय हो गई हैं। अत: इन वनौषधियों की प्राप्ति हेतु जंगलों पर निर्भर न रहना पड़े तथा खेती द्वारा उच्च कोटि की वनस्पतियाँ प्राप्त हों, उनका निर्यात हो और किसानों को अच्छी आमदनी हो-इसी उद्देश्य से प्रस्तुत पुस्तक का लेखन किया गया है।
आशा है, इसके माध्यम से किसानों, भैषज व्यापारियों. दवा निर्माताओं एवं उपभोक्ताओ को वनौषधियों की विशद जानकारी उपलब्ध होगी, शुद्ध औषधियाँ प्राप्त होंगी तथा उनको अधिकाधिक आमदनी एवं लाभ प्राप्त होगा।
धनंजय न. देशपांडे
सन् 1980 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पी-एच. डी. की उपाधि प्राप्त की, तदुपरांत वहीं पर वरिष्ठ शोध अधिकारी के पद पर 'औषधीय एवं सुगंधीय वनस्पतियों का कीटनाशक के तौर पर उपयोग' विषय पर अनुसंधान।
राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय शोध नियतकालिकों मेंकेवल पाँचवर्षोमें तेईस से भी ज्यादा अनुसंधान शोध-प्रबंध प्रकाशित ।
सन् 1986 में नोबल सिरैमिक प्रालि नामक सिरैमिक व रिफ्रेक्टरी उद्योग तथा 1992 में वेंकटेश्वर प्रोजेक्ट कंसल्टेंसी प्रालि नामक सलाहकार कंपनी की स्थापना।
सन् 1998 का लघु उद्यत श्रेणी का रार्ष्ट्राय उद्योग शिरोमणि'. 2000 का 'हिंद गौरव' तथा 'मिलेनियम पर्सन पुरस्कार' से पुरस्कृत। सन् 2000 में 'औषधीय एवं सुगंधीय वनस्पतियों की व्यावसायिक कृषि' नामक पुस्तक मराठी भाषा में प्रकाशित।