आचार्य महाश्रमण उन महान् संत-विचारकों में से एक हैं जिन्होंने आत्मा के दर्शन को न केवल व्याख्यायित किया है, अपितु उसे जीया भी है।
13 मई, 1962 को राजस्थान के एक कस्बे सरदारशहर में जनमे एवं 5 मई, 1974 को दीक्षित हुए आचार्य महाश्रमण अणुव्रत आंदोलन के प्रवर्तक आचार्यश्री तुलसी एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञ की परंपरा में तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें आचार्य के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
वे एक साहित्यकार, परिव्राजक, समाज सुधारक एवं अहिंसा के व्याख्याकार हैं। आचार्य श्रीमहाप्रज्ञ के साथ अहिंसा यात्रा के अनंतर आपने लाखों ग्रामवासियों एवं श्रद्धालुओं को नैतिक मूल्यों के विकास, सांप्रदायिक सौहार्द, मानवीय एकता एवं अहिंसक चेतना के जागरण के लिए अभिप्रेरित किया।
‘चरैवेति-चरैवेति’ सूक्त को धारण कर वे लाखों-लाखों लोगों को नैतिक जीवन जीने एवं अहिंसात्मक जीवन-शैली की प्रेरणा देने के लिए पदयात्राएँ कर रहे हैं। अत्यंत विनयशील आचार्य महाश्रमण अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान एवं अहिंसा प्रशिक्षण जैसे मानवोपयोगी आयामों के लिए कार्य कर तनाव, अशांति तथा हिंसा से आक्रांत विश्व को शांति एवं संयमपूर्ण जीवन का संदेश दे रहे हैं। शांत एवं मृदु व्यवहार से संवृत्त, आकांक्षा-स्पृहा से विरक्त एवं जनकल्याण के लिए समर्पित युवा मनीषी आचार्य महाश्रमण भारतीय संत परंपरा के गौरव पुरुष हैं।