आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म सन् 1884 को बस्ती जिले के अगोना गाँव में हुआ। सन् 1901 में प्रयाग के कायस्थ पाठशाला इंटर कॉलेज में एफ.ए. पढ़ने के लिए गए, परंतु गणित में कमजोर होने के कारण शीघ्र ही उसे छोड़कर ‘लीडरशिप’ की परीक्षा पास करनी चाही, उसमें भी वे असफल रहे। परंतु इन परीक्षाओं की सफलता या असफलता से अलग वे बराबर साहित्य, मनोविज्ञान, इतिहास आदि के अध्ययन में लगे रहे। उन्होंने हिंदी, उर्दू, संस्कृत एवं अंग्रेजी के साहित्य का गहन अनुशीलन किया।
उन्होंने ‘हिंदी शब्द सागर’ के साथ ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ का संपादन भी किया। सन् 1937 ई. में वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी-विभागाध्यक्ष नियुक्त हुए एवं इस पद पर रहते हुए ही सन् 1941 में उनकी हृदय गति रुक जाने से मृत्यु हो गई।
उन्होंने ब्रजभाषा और खड़ीबोली में फुटकर कविताएँ लिखीं तथा एडविन आर्नल्ड के ‘लाइट ऑफ एशिया’ का ‘बुद्ध चरित’ के नाम ब्रजभाषा में पद्यानुवाद से किया। मनोविज्ञान, इतिहास, संस्कृति, शिक्षा एवं व्यवहार संबंधी लेखों एवं पत्रिकाओं के भी अनुवाद किए हैं। दर्शन के क्षेत्र में भी उनकी ‘विश्व प्रपंच’ पुस्तक उपलब्ध है। संपूर्ण लेखन में उनका सबसे महत्त्वपूर्ण एवं कालजयी रूप समीक्षक, निबंध-लेखक एवं साहित्यिक इतिहासकार के रूप में प्रकट हुआ।